फूट–फूटकर रोए पाकिस्तानी जनरल नियाजी:फिर पिस्टल देकर किया सरेंडर, 1971 में आज शुरू हुई थी बांग्लादेश के लिए जंग
फूट–फूटकर रोए पाकिस्तानी जनरल नियाजी:फिर पिस्टल देकर किया सरेंडर, 1971 में आज शुरू हुई थी बांग्लादेश के लिए जंग
किस्सा 16 दिसंबर 1971 का है। भारत और पाकिस्तान की जंग शुरू हुए 12 दिन हो चुके थे। भारतीय सेना के मेजर जनरल गंधर्व एस नागरा ने पू्र्वी पाकिस्तान के गर्वनर लेफ्टिनेंट जनरल आमिर अब्दुल्ला खान नियाजी को फोन किया, "अब्दुल्ला मैं गंधर्व बोल रहा हूं।” नियाजी गंधर्व काे पहचान गए। उन्होंने पूछा, "तुम कहां हो गंधर्व?” जवाब में गंधर्व बोले, “मैं ढाका के गेट पर हूं और तुम्हारे सरेंडर का इंतजार कर रहा हूं।” नियाजी ने दबी सी जुबान में कहा, "मैं तैयार हूं।” इस बातचीत के कुछ देर बाद ही गंधर्व, नियाजी के कैंप पहुंच गए। दरअसल, बंटवारे से पहले मेजर जनरल गंधर्व और लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी एक ही कॉलेज में पढ़ते थे और आज एक दोस्त दूसरे से सरेंडर कराने पहुंचा था। कुछ घंटों बाद हुआ भी यही। पाकिस्तान के जनरल नियाजी ने भारतीय कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने अपने 90 हजार सैनिकों के साथ सरेंडर कर दिया। दुनिया के इस सबसे बड़े सरेंडर के साथ भारत-पाकिस्तान के बीच छिड़ी तीसरी जंग खत्म हो गई। पाकिस्तान दो हिस्सों में बंट गया और एक नए आजाद मुल्क बांग्लादेश का जन्म हुआ। इस जंग की शुरुआत 53 बरस पहले आज ही दिन यानी 4 दिसंबर 1971 को हुई थी। भास्कर एक्सप्लेनर में जानते हैं कि बांग्लादेश बनाने के लिए 1971 में युद्ध कैसे शुरू और कैसे खत्म... इस जंग की शुरुआत जानने से पहले पाकिस्तान के शर्मनाक सरेंडर की कहानी पूरी करना जरूरी है। पाकिस्तानी सेना 13 दिनों में ही घुटनों पर आ गई थी। भारत के सेना अध्यक्ष सैम मॉनेकशॉ ने सरेंडर पर डील करने के लिए लेफ्टिनेंट जनरल जैक फर्ज राफेल जैकब को भेजा, लेकिन लेफ्टिनेंट जनरल गंधर्व उनसे पहले ही काफी काम निपटा चुके थे। जब जैकब पाकिस्तानी सेना के हेडक्वार्टर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि जनरल गंधर्व और नियाजी एक सोफे पर बैठे। वो पंजाबी में चुटकुले सुना रहे थे। जैकब को देखते ही दोनों अलर्ट हो गए। पहुंचते ही जनरल जैकब ने जनरल नियाजी को सरेंडर की शर्तें पढ़कर सुनाईं। शर्ते सुनते ही नियाजी रोने लगे। उन्होंने भरी आंखों से कहा, मैं सरेंडर कर रहा हूं, लेकिन जनरल फरमान अली सरेंडर नहीं करने दे रहे। नियाजी को हिचकिचाता देख जनरल जैकब उन्हें कोने में ले गए। उन्होंने कहा-जनरल आपने सरेंडर नहीं किया तो मैं ढाका में आपके परिवार की सेफ्टी की गारंटी नहीं ले सकता। मैं आपको फैसला लेने के लिए 30 मिनट दे रहा हूं। अगर आप सरेंडर करते हैं तो ठीक। अगर नहीं तो मैं ढाका पर फिर से बमबारी का आदेश दे दूंगा। यह कहकर जैकब कमरे से बाहर चले गए। जनरल जैकब की ऑटोबायोग्राफी 'एन ओडिसी इन वॉर एंड पीस' के अनुसार सच तो यह था कि बोल्ड बात करने बावजूद जनरल जैकब भीतर से घबराए हुए थे। नियाजी के पास अभी-भी ढाका में 26 हजार से ज्यादा फौजी थे, वहीं भारत के पास केवल 3 हजार, वो भी ढाका से 30 किलोमीटर दूर थे। 30 मिनट बाद जैकब फिर लौटे तो वहां एकदम शांति थी। सरेंडर के दस्तावेज मेज पर पड़े थे। जैकब ने नियाजी से पूछा-जनरल क्या आप सरेंडर एक्सेप्ट करते हैं। नियाजी चुप थे। जैकब ने यही सवाल तीन बार दोहराया। फिर भी नियाजी चुप थे। जैकब ने दस्तावेज उठाया और कहा, आप चुप हैं। मैं इसे आपकी सहमति मानता हूं। इसके बाद नियाजी फिर रोने लगे। एक बार फिर जैकब नियाजी को कोने में ले गए। उन्होंने कहा, सरेंडर रेस कोर्स मैदान में होगा। नियाजी बोले- नहीं, वहां नहीं, लेकिन जैकब अड़े रहे। आखिरकार नियाजी मान गए। अब सवाल यह था कि जनरल नियाजी किस चीज से सरेंडर करेंगे। जैकब ने गंधर्व नागरा को बुलाया और कहा कि नियाजी को समझाओ कि वह कुछ न कुछ तो सरेंडर करे। अब नियाजी को उनके पुराने दोस्त मेजर जनरल नागरा कोने में ले गए। उन्होंने कहा- यार तुम एक तलवार सरेंडर कर दो। नियाजी ने कहा, पाक सेना में तलवार रखने का रिवाज नहीं है। फिर गंधर्व ने कहा, तो फिर तुम्हारी बेल्ट या कैप उतारनी पड़ेगी। ये ठीक नहीं लगेगा। ऐसा करो तुम एक पिस्टल कमर में लगाओ और उसे ही सरेंडर कर देना। इसके बाद रेसकोर्स में एक मेज और दो कुर्सियां लगाई गईं। कुछ ही देर में पूर्वी सेना के कमांडर जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा पहुंचने वाले थे। तय किया गया कि भारत-पाक की सेना संयुक्त रूप से उन्हें सलामी दे। इसके बाद जनरल नियाजी ने दुनिया का सबसे बड़ा सरेंडर किया। एक चुनाव जिससे बांग्लादेश की नींव पड़ी
पाकिस्तान ईस्ट और वेस्ट में बंटा हुआ था। ईस्ट के लोग बंगाली बोलते थे। महिलाएं साड़ी पहनती थीं। सरकार चलाने वाले वेस्ट पाकिस्तान के नेता इन्हें दोयम दर्जे का मानते थे। ईस्ट पाकिस्तान में 55% आबादी थी, बावजूद इसके बजट का 80% हिस्सा वेस्ट पाकिस्तान में खर्च होता था। जब ईस्ट पाकिस्तान के लोग आवाज उठाते तो पाक आर्मी इनकी आवाज दबा देती। भेदभाव से नाराज ईस्ट पाकिस्तान के लोगों ने अलग बांग्लादेश राज्य की मांग शुरू कर दी। पाक आर्मी रोज कहीं न कहीं नरसंहार कर रही थी। इसी से बचने के लिए लोग भारत में शरण ले रहे थे। भारत पर लगातार शरणार्थियों का दबाव बढ़ रहा था, लेकिन दिसंबर 1970 में हुआ आम चुनाव उसके पाकिस्तान के बंटवारे के लिए ट्रिगर साबित हुआ। पाकिस्तान में राष्ट्रपति शासन था। वहां की संसद यानी नेशनल असेंबली में कुल 313 सीटें थीं। इसमें से पूर्वी पाकिस्तान यानी अभी के बांग्लादेश में 169 और पश्चिमी पाकिस्तान यानी वर्तमान पाकिस्तान में सिर्फ 144 सीटें थीं। सरकार बनाने के लिए बहुमत का आंकड़ा 157 था। यानी जनसंख्या हो या संसद में सीटों की संख्या, पूर्वी पाकिस्तान यानी मौजूदा बांग्लादेश वाला हिस्सा पश्चिमी पाकिस्तान पर भारी था। 1947 में पाकिस्तान बनने के बाद से ही पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच सांस्कृतिक और राजनीतिक टकराव था। पश्चिम में पंजाबी भाषी हावी थे, तो पूर्व में बांग्लाभाषी। 45% आबादी वाले पश्चिमी लोग पूरे पाकिस्तान पर राज करते थे। ऐसे हालात में शेख मुजीबुर्रहमान की अवामी लीग ने पूर्वी पाकिस्तान की 169 में से 167 सीटें जीत लीं, जबकि पूरे पाकिस्तान में सरकार बनाने
किस्सा 16 दिसंबर 1971 का है। भारत और पाकिस्तान की जंग शुरू हुए 12 दिन हो चुके थे। भारतीय सेना के मेजर जनरल गंधर्व एस नागरा ने पू्र्वी पाकिस्तान के गर्वनर लेफ्टिनेंट जनरल आमिर अब्दुल्ला खान नियाजी को फोन किया, "अब्दुल्ला मैं गंधर्व बोल रहा हूं।” नियाजी गंधर्व काे पहचान गए। उन्होंने पूछा, "तुम कहां हो गंधर्व?” जवाब में गंधर्व बोले, “मैं ढाका के गेट पर हूं और तुम्हारे सरेंडर का इंतजार कर रहा हूं।” नियाजी ने दबी सी जुबान में कहा, "मैं तैयार हूं।” इस बातचीत के कुछ देर बाद ही गंधर्व, नियाजी के कैंप पहुंच गए। दरअसल, बंटवारे से पहले मेजर जनरल गंधर्व और लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी एक ही कॉलेज में पढ़ते थे और आज एक दोस्त दूसरे से सरेंडर कराने पहुंचा था। कुछ घंटों बाद हुआ भी यही। पाकिस्तान के जनरल नियाजी ने भारतीय कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने अपने 90 हजार सैनिकों के साथ सरेंडर कर दिया। दुनिया के इस सबसे बड़े सरेंडर के साथ भारत-पाकिस्तान के बीच छिड़ी तीसरी जंग खत्म हो गई। पाकिस्तान दो हिस्सों में बंट गया और एक नए आजाद मुल्क बांग्लादेश का जन्म हुआ। इस जंग की शुरुआत 53 बरस पहले आज ही दिन यानी 4 दिसंबर 1971 को हुई थी। भास्कर एक्सप्लेनर में जानते हैं कि बांग्लादेश बनाने के लिए 1971 में युद्ध कैसे शुरू और कैसे खत्म... इस जंग की शुरुआत जानने से पहले पाकिस्तान के शर्मनाक सरेंडर की कहानी पूरी करना जरूरी है। पाकिस्तानी सेना 13 दिनों में ही घुटनों पर आ गई थी। भारत के सेना अध्यक्ष सैम मॉनेकशॉ ने सरेंडर पर डील करने के लिए लेफ्टिनेंट जनरल जैक फर्ज राफेल जैकब को भेजा, लेकिन लेफ्टिनेंट जनरल गंधर्व उनसे पहले ही काफी काम निपटा चुके थे। जब जैकब पाकिस्तानी सेना के हेडक्वार्टर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि जनरल गंधर्व और नियाजी एक सोफे पर बैठे। वो पंजाबी में चुटकुले सुना रहे थे। जैकब को देखते ही दोनों अलर्ट हो गए। पहुंचते ही जनरल जैकब ने जनरल नियाजी को सरेंडर की शर्तें पढ़कर सुनाईं। शर्ते सुनते ही नियाजी रोने लगे। उन्होंने भरी आंखों से कहा, मैं सरेंडर कर रहा हूं, लेकिन जनरल फरमान अली सरेंडर नहीं करने दे रहे। नियाजी को हिचकिचाता देख जनरल जैकब उन्हें कोने में ले गए। उन्होंने कहा-जनरल आपने सरेंडर नहीं किया तो मैं ढाका में आपके परिवार की सेफ्टी की गारंटी नहीं ले सकता। मैं आपको फैसला लेने के लिए 30 मिनट दे रहा हूं। अगर आप सरेंडर करते हैं तो ठीक। अगर नहीं तो मैं ढाका पर फिर से बमबारी का आदेश दे दूंगा। यह कहकर जैकब कमरे से बाहर चले गए। जनरल जैकब की ऑटोबायोग्राफी 'एन ओडिसी इन वॉर एंड पीस' के अनुसार सच तो यह था कि बोल्ड बात करने बावजूद जनरल जैकब भीतर से घबराए हुए थे। नियाजी के पास अभी-भी ढाका में 26 हजार से ज्यादा फौजी थे, वहीं भारत के पास केवल 3 हजार, वो भी ढाका से 30 किलोमीटर दूर थे। 30 मिनट बाद जैकब फिर लौटे तो वहां एकदम शांति थी। सरेंडर के दस्तावेज मेज पर पड़े थे। जैकब ने नियाजी से पूछा-जनरल क्या आप सरेंडर एक्सेप्ट करते हैं। नियाजी चुप थे। जैकब ने यही सवाल तीन बार दोहराया। फिर भी नियाजी चुप थे। जैकब ने दस्तावेज उठाया और कहा, आप चुप हैं। मैं इसे आपकी सहमति मानता हूं। इसके बाद नियाजी फिर रोने लगे। एक बार फिर जैकब नियाजी को कोने में ले गए। उन्होंने कहा, सरेंडर रेस कोर्स मैदान में होगा। नियाजी बोले- नहीं, वहां नहीं, लेकिन जैकब अड़े रहे। आखिरकार नियाजी मान गए। अब सवाल यह था कि जनरल नियाजी किस चीज से सरेंडर करेंगे। जैकब ने गंधर्व नागरा को बुलाया और कहा कि नियाजी को समझाओ कि वह कुछ न कुछ तो सरेंडर करे। अब नियाजी को उनके पुराने दोस्त मेजर जनरल नागरा कोने में ले गए। उन्होंने कहा- यार तुम एक तलवार सरेंडर कर दो। नियाजी ने कहा, पाक सेना में तलवार रखने का रिवाज नहीं है। फिर गंधर्व ने कहा, तो फिर तुम्हारी बेल्ट या कैप उतारनी पड़ेगी। ये ठीक नहीं लगेगा। ऐसा करो तुम एक पिस्टल कमर में लगाओ और उसे ही सरेंडर कर देना। इसके बाद रेसकोर्स में एक मेज और दो कुर्सियां लगाई गईं। कुछ ही देर में पूर्वी सेना के कमांडर जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा पहुंचने वाले थे। तय किया गया कि भारत-पाक की सेना संयुक्त रूप से उन्हें सलामी दे। इसके बाद जनरल नियाजी ने दुनिया का सबसे बड़ा सरेंडर किया। एक चुनाव जिससे बांग्लादेश की नींव पड़ी
पाकिस्तान ईस्ट और वेस्ट में बंटा हुआ था। ईस्ट के लोग बंगाली बोलते थे। महिलाएं साड़ी पहनती थीं। सरकार चलाने वाले वेस्ट पाकिस्तान के नेता इन्हें दोयम दर्जे का मानते थे। ईस्ट पाकिस्तान में 55% आबादी थी, बावजूद इसके बजट का 80% हिस्सा वेस्ट पाकिस्तान में खर्च होता था। जब ईस्ट पाकिस्तान के लोग आवाज उठाते तो पाक आर्मी इनकी आवाज दबा देती। भेदभाव से नाराज ईस्ट पाकिस्तान के लोगों ने अलग बांग्लादेश राज्य की मांग शुरू कर दी। पाक आर्मी रोज कहीं न कहीं नरसंहार कर रही थी। इसी से बचने के लिए लोग भारत में शरण ले रहे थे। भारत पर लगातार शरणार्थियों का दबाव बढ़ रहा था, लेकिन दिसंबर 1970 में हुआ आम चुनाव उसके पाकिस्तान के बंटवारे के लिए ट्रिगर साबित हुआ। पाकिस्तान में राष्ट्रपति शासन था। वहां की संसद यानी नेशनल असेंबली में कुल 313 सीटें थीं। इसमें से पूर्वी पाकिस्तान यानी अभी के बांग्लादेश में 169 और पश्चिमी पाकिस्तान यानी वर्तमान पाकिस्तान में सिर्फ 144 सीटें थीं। सरकार बनाने के लिए बहुमत का आंकड़ा 157 था। यानी जनसंख्या हो या संसद में सीटों की संख्या, पूर्वी पाकिस्तान यानी मौजूदा बांग्लादेश वाला हिस्सा पश्चिमी पाकिस्तान पर भारी था। 1947 में पाकिस्तान बनने के बाद से ही पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच सांस्कृतिक और राजनीतिक टकराव था। पश्चिम में पंजाबी भाषी हावी थे, तो पूर्व में बांग्लाभाषी। 45% आबादी वाले पश्चिमी लोग पूरे पाकिस्तान पर राज करते थे। ऐसे हालात में शेख मुजीबुर्रहमान की अवामी लीग ने पूर्वी पाकिस्तान की 169 में से 167 सीटें जीत लीं, जबकि पूरे पाकिस्तान में सरकार बनाने के लिए जरूरत सिर्फ 157 सीटों की थी। पश्चिमी पाक के नेता कभी नहीं चाहते थे कि बंगाली उन पर राज करें। नतीजतन पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह जनरल याह्या खान ने शेख मुजीबुर्रहमान को प्रधानमंत्री बनाने से इनकार कर दिया। 7 मार्च 1971 को बंगबंधु के नाम से मशहूर शेख मुजीबुर्रहमान ने ढाका के रेसकोर्स ग्राउंड में एक ऐतिहासिक भाषण दिया। उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान को आजाद घोषित कर देश को बांग्लादेश नाम दिया और भारत से मदद मांग ली। उन्हें गिरफ्तार कर पश्चिमी पाकिस्तान की जेल में डाल दिया गया। इसके विरोध में मुक्ति वाहिनी नाम का एक विद्रोही संगठन बन गया। इधर 17 मार्च को भारत में कांग्रेस अध्यक्ष इंदिरा गांधी ने 515 में से 325 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल किया और वे PM बनीं। 26 मार्च 1971 को बांग्लादेश ने आजादी की घोषणा की थी और मुक्ति युद्ध शुरू हुआ था। तब से हर साल 26 मार्च को बांग्लादेश स्वतंत्रता दिवस मनाता है। 25 मार्च 1971 काे पाकिस्तान ने अपने पूर्वी हिस्से कथित विद्रोह को कुचलने के लिए कर्फ्यू लगाकर ऑपरेशन सर्च लाइट शुरू कर दिया। जिम्मेदारी दी गई जनरल टिक्का खान को। पहले ही दिन पाक सेना को बांग्लादेश का झंडा उठाए जितने लोग भी दिखे उन्हें मार दिया गया। सेना ने रात में ढाका यूनिवर्सिटी पर धावा कर दिया। दो दिन में पाकिस्तानी सेना 1.5 लाख से ज्यादा लोगों को मार डाला। जब 27 मार्च को कर्फ्यू हटा तो बांग्लादेश की 80% आबादी जान बचाने के लिए भारत के सीमावर्ती राज्यों में घुस आई। अप्रैल के पहले ही सप्ताह में 10 लाख लोग असम और पश्चिम बंगाल में शरण मांगने खड़े थे। सैम मानेकशॉ ने कहा- मैडम PM, मैं युद्ध के लिए तैयार नहीं हूं
रिटायर्ड मेजर जनरल शुभि सूद अपनी किताब ‘फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ' में लिखते हैं, 27 अप्रैल 1971 को शरणार्थी शिविरों का दौरा करने के बाद इंदिरा गांधी ने सुबह 10 बजे कैबिनेट की बैठक बुलाई। बैठक में सेना अध्यक्ष जनरल सैम मानेकशॉ को भी बुलाया गया। इंदिरा ने तमतमाते हुए कहा, ये देखिए असम, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा के मुख्यमंत्रियों के तार। पूर्वी पाकिस्तान से लगातार लोग आ रहे हैं। जनल सैम ने पूछा, आप मुझसे क्या करवाना चाहती हैं? इंदिरा ने कहा, सेना लेकर ईस्ट पाकिस्तान जाइए। सैम ने कहा, मतलब युद्ध होगा। इंदिरा ने जवाब दिया, मुझे पता है, लेकिन हमें युद्ध से कोई दिक्कत नहीं है। सैम ने कहा, क्या आप युद्ध के लिए तैयार हैं? मैं तैयार नहीं हूं। ये वो समय था जब इंदिरा गांधी को कोई पलट कर जवाब नहीं देता था। सैम का ये जवाब सुनकर वहां मौजूद मंत्री और अफसर सन्न रह गए। इंदिरा भी तमतमा गईं। मानेकशॉ फिर भी नहीं डिगे। जीवनीकार हनादी फालकी अपनी किताब ‘फील्ड मार्शल मानेकशॉ' में लिखती हैं, सैम ने इंदिरा गांधी की ओर मुड़ते हुए कहा, मैडम प्राइम मिनिस्टर पिछले साल आप पश्चिम बंगाल में चुनाव चाहती थीं। आप नहीं चाहती थीं कि कम्युनिस्ट जीतें, इसलिए आप ने मुझसे पश्चिम बंगाल के हर गांव, हर छोटी बस्ती में अपने सैनिकों को तैनात करने के लिए कहा। मेरे पास दो डिवीजन हैं, जो भारी हथियारों के बिना सेक्शन और प्लाटून में तैनात हैं। उन्हें उनकी यूनिट में वापस लाने में मुझे कम से कम एक महीना लगेगा। इसके अलावा मेरे पास असम में एक डिवीजन, आंध्र प्रदेश में एक और डिवीजन और झांसी-बबीना क्षेत्र में बख्तरबंद डिवीजन है। उन्हें वापस लाने और उन्हें उनकी सही स्थिति में रखने में मुझे कम से कम एक महीना लगेगा। उन्हें ले जाने के लिए हर सड़क, हर रेलवे ट्रेन, हर ट्रक, हर वैगन की जरूरत होगी। उस समय हम पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में फसल की कटाई कर होते हैं। आप अपनी फसल को इधर-उधर नहीं ले जा सकेंगे। अगली लाइन में वित्त मंत्री चव्हाण थे। उन्हें देखकर सैम ने कहा, मेरे बख्तरबंद डिवीजन में 189 में से केवल 13 टैंक हैं जो काम कर रहे हैं, क्योंकि आप वित्त मंत्री हैं। मैं डेढ़ साल से पैसे मांग रहा हूं। आप कहते हैं पैसे नहीं हैं। इस कारण मेरे पास टैंक नहीं हैं। विदेश मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह को समझाते हुए सैम ने कहा कि हिमालय के दर्रे खुल रहे हैं। चीन भारत को अल्टीमेटम दे सकता है। उस स्थिति में हमें दो मोर्चों पर लड़ना होगा। सैम ने बताया कि जब हम युद्ध कर रहे होंगे पूर्वी पाकिस्तान में मानसून के कारण भारी बाढ़ आएगी, जिससे सैनिकों की आवाजाही मुश्किल हो जाएगी। मैडम PM उस समय वायु सेना खराब मौसम के कारण मदद नहीं कर पाएगी। सैम ने इंदिरा से कहा- मैं इस्तीफा देने को तैयार हूं
ये सुनने के बाद इंदिरा गांधी बेहद गुस्से में थीं। उन्होंने मीटिंग खत्म कर दी और सैम को रुकने के लिए कहा। सैम ने कहा कि मैडम आप चाहें तो मैं इस्तीफा देने को तैयार हूं। इंदिरा ने कहा इसकी जरूरत नहीं और सलाह मांगी। सैम ने कहा कि हम जून में लड़ेंगे तो हार जाएंगे। नवंबर आखिर में लड़ाई का सही समय होगा। सैम ने कहा, देखिए लड़ना मेरा काम है। मुझे जीतने के लिए लड़ना है। अगर आप आज युद्ध में जाते हो, तो हार जाएंगी। मुझे और छह महीने दीजिए, मैं आपको 100% जीत की गारंटी देता हूं। मैडम मैं रेवेन्यू मिनिस्टर, होम मिनिस्टर, डिफेंस मिनिस्टर से ऑर्डर नहीं लूंगा। इंदिरा गांधी ने कहा- ठीक है सैम तुम ही कमांडर होगे और काेई दखल नहीं देगा। इसके बाद उन्होंने रॉ प्रमुख आरएन काव को मुक्ति वाहिनी को ट्रेनिंग देने की जिम्मेदारी दी, ताकि वो भारतीय सेना की मदद कर सकें। विस्फोटकों पर कंडोम लगाकर उड़ा दिए पाकिस्तान के जहाज
रॉ की ट्रेनिंग से मुक्ति वाहिनी गोरिल्ला युद्ध में माहिर हो गई। चटगांव बंदरगाह पाकिस्तानी सेना का खास अड्डा था। मुक्ति वाहिनी ने पाकिस्तान के सैन्य जहाजों को उड़ाने का प्लान बनाया। इसके लिए पहले तैर कर जहाज के तले में एक टाइम बम जैसा विस्फोटक लगाना था। इसे लिम्पेट माइन कहा जाता था। कैप्टन एमएनआर सामंत और वरिष्ठ पत्रकार संदीप उन्नीथन अपनी किताब ‘ऑपरेशन एक्स: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ इंडियाज कोवर्ट नेवल वॉर इन ईस्ट पाकिस्तान 1971' में लिखते हैं कि लिम्पेट माइन में पानी में घुलने वाला एक चार इंच का प्लग था। वही टाइमर का काम करता था। ये आधे घंटे में पानी में घुल जाता था और ब्लास्ट हो जाता था। परेशानी यह थी कि तैराक आधे घंटे भीतर विस्फोटक लगातर लौट नहीं सकते थे। एक रात भारतीय अफसर इसी पशोपेश में थे कि अचानक एक ट्रेनर चिल्लाया, “क्यों न इस घटिया गलने वाली चीज पर कंडोम लगा दिया जाए...@#$# ये पिघलेगी ही नहीं।” ये बात सीनियर अफसर सुन रहे थे। चार दिन बाद मेडिकल स्टोर से कंडोम खरीदकर उस प्लग में लगाए गए। तैराक जब तक जहाज तक पहुंचते प्लग कंडोम के भीतर सुरक्षित रहते। विस्फोटक फिट करते ही ये तैराक कंडोम हटा देते और समय रहते अपने ठिकाने पर लौट आते। आधे घंटे बाद विस्फोट होता और जहाज समुद्र की गर्त में पहुंच जाते। इसी ट्रिक से 4 दिसंबर की शाम चटगांव बंदरगाह पर पाकिस्तानी सेना के जहाजों में से एक के बाद एक विस्फोट हुए और किनारे पर खड़े उनके कई जहाज वहीं पानी में समा गए। भारत ने INS विक्रांत को छिपाया और गाजी को डुबोया
13 नवंबर को पाकिस्तानी पनडुब्बी PNS गाजी के कप्तान जफर मोहम्मद खां को एक लिफाफा दिया गया। उसमें ऑर्डर थे कि वे बांग्लादेश की रक्षा के लिए तैयार INS विक्रांत को पानी के भीतर से हमला कर डुबो दे। ये भी बताया गया था कि 3 दिसंबर 1971 को पाक वायुसेना भारत के एयरबेस पर हमला करेगी। पाकिस्तान नेवी पर आधारित किताब ‘स्टोरी ऑफ द पाकिस्तान नेवी 1947-1972' के अनुसार पाकिस्तान को पता था कि INS विक्रांत के बॉयलर के वॉटर ड्रम में क्रैक आ गए थे। विक्रांत को मरम्मत के लिए चेन्नई में खड़ा किया गया था। भारतीय सेना के पूर्व मेजर जनरल और एवीएसएम एसएम से सम्मानित इयान कार्डोजो अपनी किताब ‘1971: स्टोरी ऑफ ग्रिट एंड ग्लोरी फ्रॉम द इंडो-पाक वॉर' में लिखते हैं कि 14 नवंबर को गाजी कराची से चेन्नई के लिए रवाना हुई। 20 नवंबर को कमांडर जफर खान को कराची से मैसेज मिला कि INS विक्रांत चेन्नई पोर्ट पर नहीं है। भारत को खबर लग गई थी कि पाकिस्तान ने साइंलेंट किलर गाजी को विक्रांत को खत्म करने के लिए भेजा है। विक्रांत को बचाना हर हाल में जरूरी था, इसलिए उसे चेन्नई पोर्ट से थोड़ा अलग खड़ा कर दिया। गाजी को अगर कोई खत्म कर सकता था तो वह INS राजपूत था। उसे चेन्न्ई लाना संभव नहीं था, क्योंकि उसके इंजन में कोई समस्या आ गई थी। वह विशाखापत्तनम पोर्ट पर खड़ा था। भारत ने INS विक्रांत पर तैनात जितने भी अफसर थे, उन्हें कहा कि आप अपने घर फोन कीजिए कि हम विशाखापत्तनम आ रहे हैं। ये खबर पाकिस्तान के जासूसों तक चली गई। 1 दिसंबर की रात 11:45 पर गाजी विशाखापत्तनम पहुंची। वह आगे नहीं जा सकती थी, क्योंकि वहां पानी कम था। गाजी के कमांडर ने तय किया कि जहां है वहीं से हमला किया जाएगा। 3 दिसंबर 1971 की सुबह हो चुकी थी, ‘विक्रांत' को डुबोने का समय आ गया था। शाम 6 बजे मेडिकल अफसर ने कैप्टन जफर को बताया कि पनडुब्बी के इंजन रूम की हवा बहुत खराब हो गई है। शाम छह बजे गाजी को ताजी हवा के लिए सतह से 27 फीट नीचे लाया गया। इतने में पेरिस्कोप पर कमांडर ने देखा कि एक किलोमीटर दूर एक भारतीय गश्ती बोट आ रही है। जफर ने वॉच अफसर को चिल्लाकर कहा कि गोता लगाओ! दो मिनट में गाजी नीचे चली गई। गश्ती बोट चली गई। कैप्टन को आश्चर्य हुआ कि इतनी बड़ी पनडुब्बी को गश्ती बोट नहीं देख पाई। जफर को पता था कि इंडियन नेवी ने रूस से मिसाइल वोट मंगवाई है। इन्हें बंदरगाहों के लिए सुरक्षा के लिए डिजाइन किया गया था। जब 3 दिसंबर 1971 की शाम को विशाखापत्तनम के समुद्र में जोरदार विस्फोट हुआ। जब जांच की गई तो पता चला कि पाकिस्तान की एक पनडुब्बी पानी में डूब गई है। जब अमेरिका ने अपना सातवां बेड़ा भेज दिया था
युद्ध में अपने दोस्त पाकिस्तान को हारता देख अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र में बताया कि युद्धक विमानों से लैस उसका सातवां बेड़ा USS एंटरप्राइज पूर्व पाकिस्तान जाएगा, क्योंकि ढाका में कई अमेरिकी फंसे हुए हैं। खास बात यह थी कि इस ऐलान से एक दिन पहले ही अमेरिका अपने सभी नागरिकों को निकाल चुका था। असल में भारत पर दबाव बनाने की ये रणनीति थी। अमेरिका की मदद के लिए ब्रिटेन ने भी अपने विमानवाहक पोत HMS ईगल को भी अरब सागर भेज दिया था। परेशान इंदिरा गांधी ने सोवियत संघ से मदद मांगी। जवाब में सोवियत संघ ने 13 दिसंबर को 10वें ऑपरेटिव बैटल ग्रुप यानी प्रशांत महासागर में तैनात बेड़े को बंगाल की खाड़ी की तरफ भेज दिया। अमेरिका और ब्रिटेन के फ्लिट्स के पहुंचने से पहले ही रूस पहुंच चुका था। रूस ने ब्रिटेन को भेजा गया एक संदेश पकड़ा, जिसमें कहा गया था कि सर हमें देर हो चुकी है। यहां पहले से ही रूस की परमाणु पनडुब्बियां और कई युद्धपोत तैनात हैं। रूस को देखकर अमेरिका और ब्रिटेन कुछ नहीं कर सके। भुट्टो सीज फायर के लिए UN में लड़ रहे थे, उधर सेना ने सरेंडर कर दिया
एक के बाद एक मोर्चे पर पाकिस्तान मात खा रहा था। भारत को रोकने के लिए पाकिस्तान ने अमेरिका और चीन की मदद से यूनाइटेड नेशन में अपील की। पाक ने कहा कि UN भारत से कहे कि वो सीजफायर कर दे। यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल की बैठक आयोजित की गई। वहां US पाकिस्तान को फेवर कर रहा था, वहीं सोवियत यूनियन (रूस) भारत के साथ दृढ़ता से खड़ा था। UA के कारण चाइना और ब्रिटेन भी पाक को सपोर्ट कर रहे थे। इस बीच सबसे पहले ब्रिटेन और फ्रांस ने बांग्लादेश को एक अलग देश के रूप में माना। इससे पाकिस्तान चिढ़ गया। 12 दिसंबर आते-आते पाकिस्तान को लगने लगता है कि वह हार चुका है। उस समय पाकिस्तान के विदेश मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो भारत पर सीज फायर का दबाव बनाने की रणनीति बनाने के लिए न्यूयॉर्क जाते हैं। अमेरिका एक सीजफायर प्रपोजल लाता है। प्रपोजल बनाने में चार दिन लग जाते हैं। 16 दिसंबर 1971 को जुल्फिकार अली भुट्टो अपनी बात रख रहे होते हैं। 16 दिसम्बर को न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार भुट्टो की आंखों में आंसू थे। वे अपनी भरी आंखों से सुरक्षा परिषद से कह रहे थे कि मैं आप लोगों से न्याय मांगने आया हूं। भुट्टो ने कहा सुरक्षा परिषद से मेरे देश को इंसाफ नहीं दिया जा रहा है। मैं जब से यहां आया हूं, टालमटोल की रणनीति में फंसा हूं। इस बीच भुट्टो के साथ बैठे पाकिस्तान के UN में प्रतिनिधि आगा शाह को एक पाकिस्तानी अफसर कान में आकर कुछ कहते हैं। भुट्टो माइक बंद कर देते हैं। भुट्टो को पता चल जाता है कि पाकिस्तान की सेना ने ईस्ट पाकिस्तान में हार मानकर सरेंडर कर दिया है। इसके बाद भुट्टो के सुर बदल जाते हैं। वे कहते हैं मैं यहां सुरक्षा परिषद में अपना समय क्यों बर्बाद करूं? मैं अपने देश के एक हिस्से के अपमानजनक आत्मसमर्पण में भागीदार नहीं बनूंगा, हम लड़ेंगे। इसके बाद जुल्फिकार अली भुट्टो प्रपोजल लेटर UN सिक्योरिटी काउंसिल के सामने फाड़कर फेंक देते हैं। गुस्से में कुर्सी पीछे धकेलकर मीटिंग को छोड़ देते हैं। ----------------- ऐतिहासिक घटना से जुड़ी ये खबर भी पढ़िए... गांधी के हत्यारे नाथूराम को आज के दिन फांसी हुई:आखिरी शब्द थे- अखंड भारत; सावरकर को किन दलीलों ने बचा लिया महात्मा गांधी की हत्या में 9 आरोपी बनाए गए थे। उन पर 8 महीने तक लाल किले में बनी ट्रायल कोर्ट में सुनवाई हुई। इसी मामले में दोषी पाए जाने पर गोडसे और आप्टे को फांसी हुई थी। सिर्फ एक शख्स को दोषमुक्त किया गया। उनका नाम था विनायक दामोदर सावरकर। पढ़िए पूरी खबर...