एन. रघुरामन का कॉलम:अगली पीढ़ी को नैतिकता सिखाने के लिए पुराने जमाने की पैरेंटिंग चाहिए
उस दिन मैं खुशकिस्मत था। मैं साइकिल से जा रहा था और मेरे आगे चल रहा साइकिल-रिक्शा अचानक रुक गया। सब्जियों से भरे उस रिक्शे के दो पहियों को जोड़ने वाली लोहे की रॉड से मैं टकरा गया। रिक्शे को तो कुछ नहीं हुआ, पर मेरी साइकिल के आगे वाले पहिए का रिम चटक गया। मैं गिर गया, चोट लग गई। साइकिल-रिक्शा चालक को मेरे लिए बुरा लगा। उसने मुझे कहा कि ऐसी स्थिति में साइकिल न चलाऊं क्योंकि रिम कभी भी टूट सकता है और मैं मुंह के बल गिर सकता हूं। फिर मैं साइकिल के साथ पैदल-पैदल घर गया। सड़क के छोर से साइकिल के साथ पैदल आता देखकर मेरे पिता अपनी कुर्सी से उठ खड़े हो गए। इससे पहले कि मैं सारा वाकिया बताता, वह समझ गए कि कुछ तो हुआ है और सिर्फ इतना पूछा कि “तुम्हें चोट तो नहीं लगी।’ सख्तमिजाज पिता से वो कोमल शब्द सुनकर अचानक मेरे आंसू फूट पड़े। घुटने और कोहनी में लगी चोट गंभीर नहीं थी लेकिन दर्द शुरू हो गया था। इससे भी ज्यादा दर्द इस बात का था कि उस युवा लड़के के पास क्षतिग्रस्त हो गए रिम को बदलवाने के पैसे तक नहीं थे, जो कि उन दिनों महंगा सौदा होता था। उस महीने के लगभग चौथे हफ्ते की बात है, पिता जी ने कहा कि मेरी साइकिल तभी ठीक हो पाएगी, जब उन्हें अगले महीने की तनख्वाह मिलेगी। फिर उन्होंने मेरी साइकिल को चेन से बांध दिया, इसे लॉक किया और इसकी चाबी बाकी चाबियों के गुच्छे से बांध दी, ताकि मैं उस तक न पहुंच पाऊं। उन्होंने कहा, एक हफ्ते तक तुम इसे नहीं चलाना क्योंकि इससे तुम्हें नुकसान ज्यादा हो सकता है। मैंने हामी भरी। उन नौ दिनों तक, जब तक कि साइकिल की रिम ठीक नहीं हो गई, मैंने बिना सिखाए ही कई चीजें सीख लीं। बचपन का यह वाकिया इस शनिवार को मुझे तब याद आ गया, जब मैंने पढ़ा कि अहमदाबाद में एक बिजनेसमैन पिता ने अपने 20 साल के बेटे को अपनी कार के लिए एलएमवी (लाइट मोटर व्हीकल) ड्राइविंग लाइसेंस दिलाने में स्थानीय आरटीओ अधिकारियों को प्रभावित करने की कोशिश की, जबकि उनका बेटा इससे पहले पांच प्रयासों में असफल हो चुका था। जब अधिकारियों ने अपनी असमर्थता जाहिर कर दी क्योंकि यह टेस्ट कैमरे पर रिकॉर्ड होता है, तब पिता-पुत्र की जोड़ी ने एक आइडिया लगाया कि क्यों न ऑटो-रिक्शा के साथ कोशिश की जाए? और इस तरह छठवें प्रयास में बिजनेसमैन के बेटे को आखिरकार जाकर एलएमवी लाइसेंस मिल गया। जबकि इस पिता को इस बात का ध्यान रखना चाहिए था कि मैं अपने बच्चे को शॉर्ट-कट से लाइसेंस लेकर नहीं दूंगा, क्योंकि इससे उसी की जान को खतरा है। सड़क परिवहन मंत्रालय के महान नियम को भी धन्यवाद है, जो कार, ऑटोरिक्शा, टैक्सी और मिनी बस और मिनी ट्रकों को एलएमवी श्रेणी में रखता है। ऑटोरिक्शा में, ड्राइवर की सीट से दोनों तरफ स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। ड्राइवर को बस यह सुनिश्चित करना होता है कि ऑटोरिक्शा का अगला टायर ट्रैक के बीच में बनी पीली लाइन के करीब हो और गति संभालनी होती है। फंडा यह है कि अगर आप वाकई चाहते हैं कि बच्चे आगे चलकर नैतिकता भरा जीवन बिताएं, तो उन्हें शॉर्ट कट न सिखाएं। उन्हें उन्हीं रास्तों से होकर गुजरने दें, जिस पर हम और हमारे माता-पिता चले थे। पुरानी चीजें लौटने दें, ताकि अगली पीढ़ी नैतिकता भरा जीवन जिए।
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