आज का एक्सप्लेनर:क्या पहले महादेव का मंदिर थी अजमेर शरीफ दरगाह; पक्ष और विपक्ष पर वो सब कुछ जो जानना जरूरी

‘हमारी मांग है कि अजमेर दरगाह को संकट मोचन महादेव मंदिर घोषित किया जाए। अगर दरगाह का किसी तरह का पंजीकरण है तो उसे रद्द किया जाए। इसका ASI सर्वेक्षण कराया जाए और हिंदुओं को वहां पूजा करने का अधिकार दिया जाए।’ हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अजमेर की एक कोर्ट में दायर याचिका में यह बात कही है। 27 नवंबर को अदालत ने याचिका मंजूर कर ली है। अजमेर शरीफ दरगाह के शिव मंदिर होने के दावे क्यों किए जा रहे, इसी टॉपिक पर है आज का एक्सप्लेनर… सवाल 1: कोर्ट ने अजमेर शरीफ दरगाह से जुड़ी कौन सी याचिका स्वीकार कर ली, जिस पर हंगामा मचा है? जवाब: 25 सिंतबर 2024 को हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अजमेर की सिविल कोर्ट में एक याचिका दायर की। 38 पेज की याचिका में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के अंदर एक शिव मंदिर होने का दावा किया गया। गुप्ता ने अजमेर शरीफ दरगाह पर 2 साल की रिसर्च और एक किताब ‘अजमेर: हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव’ का हवाला दिया। इसमें बताया गया कि दरगाह के नीचे शिव मंदिर मौजूद है। 27 नवंबर को याचिकाकर्ता के वकील योगेश सिरोजा ने सिविल जज मनमोहन चंदेल की बेंच के सामने तथ्य रखे। कोर्ट ने याचिका को मंजूर कर लिया। कोर्ट ने अजमेर दरगाह समिति, अल्पसंख्यक मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को एक नोटिस जारी किया। तीनों से 20 दिसंबर तक जवाब मांगा है। सवाल 2: अजमेर दरगाह के मंदिर होने का दावा करने वाले हिंदू सेना के चीफ विष्णु गुप्ता कौन हैं? जवाब: 38 वर्षीय विष्णु गुप्ता का जन्म उत्तर प्रदेश के एटा में हुआ था। गुप्ता बचपन से ही उग्र हिंदू राष्ट्रवाद में दिलचस्पी रखते थे। वे कॉलेज के दिनों में ही शिवसेना की युवा शाखा में शामिल हो गए। 2008 में उन्होंने बजरंग दल जॉइन कर लिया। 2011 में गुप्ता ने अपने साथियों के साथ हिंदू सेना की स्थापना की। शिवसेना या RSS से कोई संबंध नहीं होने के बावजूद हिंदू सेना कई विवादों में शामिल रही… सवाल 3: याचिका में अजमेर शरीफ दरगाह के शिव मंदिर होने के पीछे क्या तर्क दिए? जवाब: विष्णु गुप्ता ने याचिका में तीन तर्क दिए। इन्हीं के आधार पर उन्होंने जांच की मांग की… पहला: हरविलास शारदा की किताब रिटायर्ड जज हरबिलास शारदा ने 1911 में ‘अजमेर: हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव’ किताब लिखी। 168 पन्नों की इस किताब में ‘दरगाह ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती’ नाम से एक पूरा चैप्टर है। विष्णु गुप्ता ने कहा- जब मैंने हरबिलास शारदा की किताब को पढ़ा तो उसमें साफ-साफ लिखा था कि यहां पहले ब्राह्मण दंपती रहते थे। यह दंपती सुबह चंदन से महादेव का तिलक करते थे और जलाभिषेक करते थे। दूसराः विष्णु गुप्ता ने खुद दरगाह की छानबीन की विष्णु गुप्ता ने दावा किया कि उन्होंने 2 साल तक अजमेर में रिसर्च की है। वे खुद दरगाह के अंदर गए और छानबीन की। इस जांच में 3 बातें पता चली… तीसरा: अजमेर के लोगों की राय याचिका में विष्णु गुप्ता ने कहा कि अजमेर का हर एक शख्स जानता है और उनके पूर्वज भी बताते रहे हैं कि दरगाह के नीचे शिवलिंग होता था। यहां हिंदू मंदिर था। इस पर अजमेर दरगाह के प्रमुख उत्तराधिकारी और ख्वाजा साहब के वंशज नसरुद्दीन चिश्ती ने बयान दिया- कुछ लोग सस्ती मानसिकता के चलते ऐसी बातें कर रहे हैं। आए दिन हर मस्जिद-दरगाह में मंदिर होने का दावा किया जा रहा है। हरबिलास शारदा की किताब की बात छोड़ दें, यहां के 800 साल पुराने इतिहास को नहीं नकारा जा सकता है। अंदर जो चांदी (42,961 तोला) का कटहरा है वो जयपुर महाराज ने दरगाह पर चढ़ाया हुआ है। सवाल- 4: अजमेर शरीफ दरगाह की कहानी क्या है, ये क्यों इतनी प्रचलित है? जवाब: इतिहासकार डॉ. जाहरुल हसन शाहरिब की किताब ‘ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती’ के मुताबिक, मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म सन 1135 में ईरान के इस्फान शहर में हुआ था। 1149 में वो तालीम हासिल करने के लिए उज्बेकिस्तान के समरकंद और बुखारा चले गए। यहां उन्होंने 1155 तक शिक्षा हासिल की। इसके बाद वे चिश्ती ऑर्डर के संत उस्मान हारूनी के साथ हज करने मक्का-मदीना गए। किताब के मुताबिक, वहां उन्हें पैगम्बर मोहम्मद साहब का ख्वाब आया। उन्होंने मोइनुद्दीन चिश्ती को दिल्ली जाने का आदेश दिया। यहां से वे सीधे दिल्ली की तरफ रवाना हो गए। 11वीं सदीं के अंत तक वे दिल्ली पहुंचे और फिर अजमेर चले गए। यहां उन्हें एक नया नाम मिला 'गरीब नवाज' यानी गरीबों का भला करने वाला। उनके पास सभी धर्मों के लोग आने लगे। इससे वे दूर-दूर तक मशहूर हो गए। 1236 में मोइनुद्दीन चिश्ती के निधन के बाद अजमेर में उनका मकबरा बनाया गया। शुरुआत में यह एक छोटा सा मकबरा था। समय के साथ अलग-अलग लोगों ने दरगाह का निर्माण कराया। मांडू के बादशाह महमूद खिलजी ने यहां एक मस्जिद बनवाई। इसके बाद मुगल सल्तनत में भी यहां निर्माण कार्य हुए। मोहम्मद बिन तुगलक और शेरशाह सूरी जैसे बादशाहों ने भी दरगाह को संरक्षण दिया। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का उर्स हर साल इस्लामिक माह रजब में मनाया जाता है। हजारों लोग उर्स में शामिल होने के लिए दूर-दूर से आते हैं। इस दौरान दिल्ली के महरौली में स्थित कुतुब उद्दीन बख्तियार कारी की दरगाह से एक जुलूस निकलता है। ये जुलूस 400 किलोमीटर पैदल चलकर अजमेर शरीफ दरगाह पर पहुंचता है। जुलूस में हिस्सा लेने वाले लोगों को 'कलंदर' कहा जाता है। सवाल 5: अजमेर शरीफ दरगाह का जिक्र किन ऐतिहासिक किताबों में किस रूप में किया गया है? जवाब: अजमेर शरीफ की दरगाह का 3 मशहूर किताबों में भी जिक्र किया गया है… 1. अकबरनामा इस किताब को 16वीं सदी में अबुल फजल ने लिखा था। इसमें बताया गया कि 1562 में अकबर फतेहपुर जा रहे थे। मंडाकर गांव के पास से गुजरते समय उन्होंने दरगाह के चमत्कारों के बारे में सुना और वे दरगाह जा पहुंचे। इसके बाद यह दरगाह आम जनता और शासकों के लिए आस्था का केंद्र बन गई। 2. सम अकाउंट ऑफ द जनरल एंड मेडिकल टोपोग्राफी ऑफ अजमेर इस किताब को 1841 में आर एच इरविन ने लिखा था। इसके मुताबिक, ख्वाजा मोइनु

आज का एक्सप्लेनर:क्या पहले महादेव का मंदिर थी अजमेर शरीफ दरगाह; पक्ष और विपक्ष पर वो सब कुछ जो जानना जरूरी
‘हमारी मांग है कि अजमेर दरगाह को संकट मोचन महादेव मंदिर घोषित किया जाए। अगर दरगाह का किसी तरह का पंजीकरण है तो उसे रद्द किया जाए। इसका ASI सर्वेक्षण कराया जाए और हिंदुओं को वहां पूजा करने का अधिकार दिया जाए।’ हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अजमेर की एक कोर्ट में दायर याचिका में यह बात कही है। 27 नवंबर को अदालत ने याचिका मंजूर कर ली है। अजमेर शरीफ दरगाह के शिव मंदिर होने के दावे क्यों किए जा रहे, इसी टॉपिक पर है आज का एक्सप्लेनर… सवाल 1: कोर्ट ने अजमेर शरीफ दरगाह से जुड़ी कौन सी याचिका स्वीकार कर ली, जिस पर हंगामा मचा है? जवाब: 25 सिंतबर 2024 को हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अजमेर की सिविल कोर्ट में एक याचिका दायर की। 38 पेज की याचिका में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के अंदर एक शिव मंदिर होने का दावा किया गया। गुप्ता ने अजमेर शरीफ दरगाह पर 2 साल की रिसर्च और एक किताब ‘अजमेर: हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव’ का हवाला दिया। इसमें बताया गया कि दरगाह के नीचे शिव मंदिर मौजूद है। 27 नवंबर को याचिकाकर्ता के वकील योगेश सिरोजा ने सिविल जज मनमोहन चंदेल की बेंच के सामने तथ्य रखे। कोर्ट ने याचिका को मंजूर कर लिया। कोर्ट ने अजमेर दरगाह समिति, अल्पसंख्यक मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को एक नोटिस जारी किया। तीनों से 20 दिसंबर तक जवाब मांगा है। सवाल 2: अजमेर दरगाह के मंदिर होने का दावा करने वाले हिंदू सेना के चीफ विष्णु गुप्ता कौन हैं? जवाब: 38 वर्षीय विष्णु गुप्ता का जन्म उत्तर प्रदेश के एटा में हुआ था। गुप्ता बचपन से ही उग्र हिंदू राष्ट्रवाद में दिलचस्पी रखते थे। वे कॉलेज के दिनों में ही शिवसेना की युवा शाखा में शामिल हो गए। 2008 में उन्होंने बजरंग दल जॉइन कर लिया। 2011 में गुप्ता ने अपने साथियों के साथ हिंदू सेना की स्थापना की। शिवसेना या RSS से कोई संबंध नहीं होने के बावजूद हिंदू सेना कई विवादों में शामिल रही… सवाल 3: याचिका में अजमेर शरीफ दरगाह के शिव मंदिर होने के पीछे क्या तर्क दिए? जवाब: विष्णु गुप्ता ने याचिका में तीन तर्क दिए। इन्हीं के आधार पर उन्होंने जांच की मांग की… पहला: हरविलास शारदा की किताब रिटायर्ड जज हरबिलास शारदा ने 1911 में ‘अजमेर: हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव’ किताब लिखी। 168 पन्नों की इस किताब में ‘दरगाह ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती’ नाम से एक पूरा चैप्टर है। विष्णु गुप्ता ने कहा- जब मैंने हरबिलास शारदा की किताब को पढ़ा तो उसमें साफ-साफ लिखा था कि यहां पहले ब्राह्मण दंपती रहते थे। यह दंपती सुबह चंदन से महादेव का तिलक करते थे और जलाभिषेक करते थे। दूसराः विष्णु गुप्ता ने खुद दरगाह की छानबीन की विष्णु गुप्ता ने दावा किया कि उन्होंने 2 साल तक अजमेर में रिसर्च की है। वे खुद दरगाह के अंदर गए और छानबीन की। इस जांच में 3 बातें पता चली… तीसरा: अजमेर के लोगों की राय याचिका में विष्णु गुप्ता ने कहा कि अजमेर का हर एक शख्स जानता है और उनके पूर्वज भी बताते रहे हैं कि दरगाह के नीचे शिवलिंग होता था। यहां हिंदू मंदिर था। इस पर अजमेर दरगाह के प्रमुख उत्तराधिकारी और ख्वाजा साहब के वंशज नसरुद्दीन चिश्ती ने बयान दिया- कुछ लोग सस्ती मानसिकता के चलते ऐसी बातें कर रहे हैं। आए दिन हर मस्जिद-दरगाह में मंदिर होने का दावा किया जा रहा है। हरबिलास शारदा की किताब की बात छोड़ दें, यहां के 800 साल पुराने इतिहास को नहीं नकारा जा सकता है। अंदर जो चांदी (42,961 तोला) का कटहरा है वो जयपुर महाराज ने दरगाह पर चढ़ाया हुआ है। सवाल- 4: अजमेर शरीफ दरगाह की कहानी क्या है, ये क्यों इतनी प्रचलित है? जवाब: इतिहासकार डॉ. जाहरुल हसन शाहरिब की किताब ‘ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती’ के मुताबिक, मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म सन 1135 में ईरान के इस्फान शहर में हुआ था। 1149 में वो तालीम हासिल करने के लिए उज्बेकिस्तान के समरकंद और बुखारा चले गए। यहां उन्होंने 1155 तक शिक्षा हासिल की। इसके बाद वे चिश्ती ऑर्डर के संत उस्मान हारूनी के साथ हज करने मक्का-मदीना गए। किताब के मुताबिक, वहां उन्हें पैगम्बर मोहम्मद साहब का ख्वाब आया। उन्होंने मोइनुद्दीन चिश्ती को दिल्ली जाने का आदेश दिया। यहां से वे सीधे दिल्ली की तरफ रवाना हो गए। 11वीं सदीं के अंत तक वे दिल्ली पहुंचे और फिर अजमेर चले गए। यहां उन्हें एक नया नाम मिला 'गरीब नवाज' यानी गरीबों का भला करने वाला। उनके पास सभी धर्मों के लोग आने लगे। इससे वे दूर-दूर तक मशहूर हो गए। 1236 में मोइनुद्दीन चिश्ती के निधन के बाद अजमेर में उनका मकबरा बनाया गया। शुरुआत में यह एक छोटा सा मकबरा था। समय के साथ अलग-अलग लोगों ने दरगाह का निर्माण कराया। मांडू के बादशाह महमूद खिलजी ने यहां एक मस्जिद बनवाई। इसके बाद मुगल सल्तनत में भी यहां निर्माण कार्य हुए। मोहम्मद बिन तुगलक और शेरशाह सूरी जैसे बादशाहों ने भी दरगाह को संरक्षण दिया। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का उर्स हर साल इस्लामिक माह रजब में मनाया जाता है। हजारों लोग उर्स में शामिल होने के लिए दूर-दूर से आते हैं। इस दौरान दिल्ली के महरौली में स्थित कुतुब उद्दीन बख्तियार कारी की दरगाह से एक जुलूस निकलता है। ये जुलूस 400 किलोमीटर पैदल चलकर अजमेर शरीफ दरगाह पर पहुंचता है। जुलूस में हिस्सा लेने वाले लोगों को 'कलंदर' कहा जाता है। सवाल 5: अजमेर शरीफ दरगाह का जिक्र किन ऐतिहासिक किताबों में किस रूप में किया गया है? जवाब: अजमेर शरीफ की दरगाह का 3 मशहूर किताबों में भी जिक्र किया गया है… 1. अकबरनामा इस किताब को 16वीं सदी में अबुल फजल ने लिखा था। इसमें बताया गया कि 1562 में अकबर फतेहपुर जा रहे थे। मंडाकर गांव के पास से गुजरते समय उन्होंने दरगाह के चमत्कारों के बारे में सुना और वे दरगाह जा पहुंचे। इसके बाद यह दरगाह आम जनता और शासकों के लिए आस्था का केंद्र बन गई। 2. सम अकाउंट ऑफ द जनरल एंड मेडिकल टोपोग्राफी ऑफ अजमेर इस किताब को 1841 में आर एच इरविन ने लिखा था। इसके मुताबिक, ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के समय दरगाह की जगह एक प्राचीन महादेव मंदिर था। चिश्ती हिंदू और मुस्लिम दोनों ही धर्मों को मानते थे। ख्वाजा मोइनुद्दीन ने 40 दिनों तक मंदिर में शिवलिंग पर जल भी चढ़ाया था। 3. द श्राइन एंड कल्ट ऑफ मुइन अल-दीन चिश्ती ऑफ अजमेर इस किताब को 1989 में ब्रिटिश इतिहासकार पीएम करी ने लिखा था। इसमें भी दरगाह के नीचे शिव मंदिर होने का जिक्र है। किताब के मुताबिक, मोइनुद्दीन चिश्ती की कब्र के नीचे शिवलिंग स्थापित है। सवाल 6: क्या अजमेर शरीफ दरगाह सच में एक हिंदू मंदिर हो सकती है? जवाब: दरगाह के पहले हिंदू मंदिर होने की बात पहले भी उठती रही है। 2021 में महाराणा प्रताप सेना संगठन ने दरगाह में स्वास्तिक चिह्न की जाली वाले फोटो शेयर किए। ASI की टीम ने दरगाह शरीफ में जांच की, लेकिन यहां टीम को कहीं भी स्वास्तिक के निशान वाली जाली नहीं मिली। नसरुद्दीन चिश्ती ने कहा- यहां 1950 में भी सर्वे हुआ था, ASI से हमें पहले ही क्लीन चिट मिल चुकी है। इसके बाद ऐसी बातें करने से आपसी भाईचारा खत्म होता है। यहां तो देश के कई राजा अकीदत करने आते थे। इतिहासकार और प्रोफेसर नदीम रिज्वी ने कहा कि दरगाह के नीचे मंदिर होने की बात गलत है। इस तरह दरगाह के नीचे मंदिर के होने की बात शुरू करने से देश की छवि पर गलत असर पड़ेगा। अजमेर शरीफ दरगाह पर सभी धर्मों के लोगों का आना होता है। सवाल 7: याचिका पर अगली सुनवाई कब होगी और उसमें क्या हो सकता है? जवाब: अजमेर शरीफ दरगाह की अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होगी। इसमें अजमेर दरगाह समिति, अल्पसंख्यक मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) अपनी रिपोर्ट पेश करेंगे। JNU के सीनियर प्रोफेसर आदित्य मुखर्जी के मुताबिक, इस याचिका में कोई दम नहीं है क्योंकि ‘द प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991’ के तहत किसी भी धार्मिक इमारत को बदला नहीं जा सकता है। सवाल 8: इस तरह धार्मिक स्थलों के पुराने विवादों से बचाने वाला 'द प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट' क्या है? जवाबः ’द प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991’ उपासना स्थलों को बदले जाने से रोकता है। एक्ट के मुताबिक, 15 अगस्त 1947 को उपासना स्थल जिस धार्मिक रूप में थे वो बरकरार रहेगा। यानी आजादी के वक्त अगर कोई मस्जिद थी, तो बाद में उसे बदलकर मंदिर या चर्च या गुरुद्वारा नहीं किया जा सकता। ये कानून 11 जुलाई 1991 को लागू किया गया। इसमें कुल 8 सेक्शन हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण 4 बातें हैं… BJP नेता और एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने इस एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। याचिका में कहा गया है कि यह कानून हिंदू, जैन, सिख और बौद्धों के संवैधानिक अधिकारों से उन्हें वंचित करता है। उनके जिन धार्मिक और तीर्थ स्थलों को विदेशी आक्रमणकारियों ने तोड़ा, उसे वापस पाने के कानूनी रास्ते को बंद करता है। मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है, जिस पर 4 दिसंबर को सुनवाई होनी है। सवाल 9: क्या मुस्लिम धार्मिक स्थलों के हिंदू होने के दावों का एक पैटर्न बनता जा रहा है? जवाबः 5 अगस्त 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर मामले में फैसला सुनाया था। कोर्ट ने माना था कि बाबरी ढांचा मंदिर को तोड़कर बनाया गया था। फैसले में विवादित जमीन राम जन्मभूमि न्यास को दी गई थी। 22 जनवरी 2024 को राम मंदिर बनकर तैयार हुआ। अयोध्या के बाद काशी की जामा मस्जिद, मथुरा की शाही ईदगाह और आगरा के ताजमहल में भी मंदिर होने के दावे लगातार किए जा रहे हैं। राम मंदिर मामले के निर्णय आने के बाद पूरे देश में उन सभी धार्मिक स्थानों की जांच की मांग उठने लगी है जहां इस प्रकार का विवाद है। संभल की जामा मस्जिद का सर्वे भी इसी कड़ी का एक हिस्सा है। हालांकि इस तरह के बढ़ते मामलों पर 2022 में RSS प्रमुख मोहन भागवत ने एक बयान जारी किया था। भागवत ने कहा था कि- हिन्दुओं को हर मस्जिद में शिवलिंग नहीं खोजना चाहिए। हम कब तक मस्जिदों के नीचे मंदिरों की खोज करेंगे? सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय के मुताबिक, देश में 900 मंदिर हैं। 1192 से 1947 के बीच इन मंदिरों को तोड़कर मस्जिद या चर्च बना दिया गया। इनमें से 100 मंदिर ऐसे हैं, जिनका जिक्र हिंदू धर्म के 18 महापुराणों में है। अश्विनी उपाध्याय कहते हैं कि ‘द प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991’ कानून का बेस 1947 रखा गया है। अगर इस तरह का कोई बेस बनाया जाता है तो वो बेस 1192 ही होना चाहिए। -------- रिसर्च सहयोग- अनमोल शर्मा -------- अजमेर दरगाह शरीफ से जुड़ी अन्य खबर पढ़ें अजमेर दरगाह में मंदिर होने के 3 आधार पेश किए:हाईकोर्ट के जज की किताब का हवाला; वंशज बोले- ऐसी हरकतें देश के लिए खतरा अजमेर की ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में संकट मोचन महादेव मंदिर होने का दावा किया गया है। अजमेर सिविल कोर्ट में लगाई गई याचिका को कोर्ट ने सुनने योग्य मानते हुए सुनवाई की अगली तारीख 20 दिसंबर तय की है। याचिका दायर करने वाले हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने मुख्य रूप से 3 आधार बताए हैं। पूरी खबर पढ़ें...