संडे जज्बात- भाई की लाश के इंतजार में बैठा हूं:थार और कोठी के लिए पैसा कमाने अमेरिका गया, डंकी रूट में हार्ट अटैक
संडे जज्बात- भाई की लाश के इंतजार में बैठा हूं:थार और कोठी के लिए पैसा कमाने अमेरिका गया, डंकी रूट में हार्ट अटैक
मैं सितार सिंह, रिटायर्ड फौजी। अमृतसर के रमदास का रहने वाला हूं। एक हफ्ते से हम अपने छोटे भाई गुरप्रीत की लाश का इंतजार कर रहे हैं। उसकी डेड बॉडी सेंट्रल अमेरिका के ग्वाटेमाला के एक हॉस्पिटल में पड़ी है। मेरा भाई नवंबर के पहले हफ्ते में डंकी रूट से अमेरिका गया था। अब पता चला कि उसकी मौत हो गई है। 7 फरवरी, शुक्रवार का दिन। मेरी भांजी का चूड़ी फंक्शन था। हम सभी वहीं थे। शाम के 4 बजे गुरप्रीत ने वॉयस मैसेज भेजा था। बोला कि पनामा जंगल से निकलकर ग्वाटेमाला आ गया हूं। अब सब ठीक है। कुछ ही दिनों में मेक्सिको पहुंच जाऊंगा। एक दिन बाद 8 फरवरी को एक लड़के ने दो फोटो भेजी और कहा- ये गुरप्रीत है। फोटो ग्वाटेमाला के हॉस्पिटल से भेजी गई थी। लड़के ने बताया कि गुरप्रीत की हार्ट अटैक से मौत हो गई है। मेरा भाई और वो लड़का अमेरिका जाने के दौरान रास्ते में मिले थे। पापा और मां ने जैसे ही गुरप्रीत की डेड बॉडी की फोटो देखी। धड़ाम से गिर पड़े। वह अमेरिका जाने से पहले कहा करता था- पापा-मम्मी, भइया… एक बार अमेरिका में सेटल हो जाऊं, उसके बाद आप लोगों को भी लेकर जाऊंगा। यदि आप नहीं जाएंगे, तो आपके बच्चों को, भाभी को लेकर जाऊंगा। आप रहना यहां अकेले। अब 8 फरवरी से इंडियन एंबेसी कह रही है कि डॉक्युमेंट्स की प्रोसेस पूरी होने के बाद ही डेड बॉडी भेजेगी। 8 दिन हो गए हैं, अब तक बॉडी नहीं आई। आखिरी बार उसका चेहरा देख लें, उसका अंतिम संस्कार कर दें, अब यही हमारी आखिरी ख्वाहिश है। हफ्तेभर से घर में मातम पसरा है। बूढ़े मां-पापा, बहनें, सभी कलेजा पीटकर रो रहे हैं। भाई अमेरिका गया था, अपने सपने पूरे करने। हमें क्या पता था कि उसके अमेरिका पहुंचने से पहले ही मरने की खबर आ जाएगी। इसके लिए किस्मत को कोसें या खुद को, कुछ समझ नहीं आ रहा। काश! वो डंकी रूट से अमेरिका न गया होता। हम सबने उसे समझाया था कि मत जाओ। मैं रिटायर होकर आ गया हूं। हम दोनों भाई मिलकर कुछ करेंगे। वो नहीं माना। आखिर उसकी इस चाहत ने जान ले ली। हमने घर में बहुत गरीबी देखी है। पहले यह कच्चा मकान था। हमारे पास जमीन नहीं है। पापा दूसरों की जमीन ठेके पर लेकर खेती करते थे। हम लोग दो भाई और 5 बहन थे। पापा के लिए घर चला पाना मुश्किल हो रहा था। इसलिए मैंने सब्जी बेचना शुरू कर दिया। सुबह के वक्त पापा गांव-गांव घूमकर सब्जी बेचते। शाम को स्कूल से आने के बाद मैं सब्जी बेचता। कुछ दिन बाद मेरी आर्मी में जॉइनिंग हो गई। मैंने कई बार गुरप्रीत से भी आर्मी जॉइन करने के लिए कहा था। वो हमेशा मना कर देता। उस पर शुरू से ही विदेश जाने की धुन सवार थी। दरअसल, उसके कई सारे दोस्त एक-एक करके अमेरिका, यूके, ऑस्ट्रेलिया चले गए। इसलिए वो भी जाना चाहता था। 12वीं के बाद गुरप्रीत मुंबई चला गया था। वहां 7 साल तक मर्चेंट नेवी की नौकरी की, फिर गांव आ गया। यहां आकर उसने देखा कि जो लोग विदेश में रहकर पैसा कमा रहे हैं, वो थार से घूमते हैं। बड़ी-बड़ी कोठियों में रहते हैं। तब वो भी कहता था कि एक दिन विदेश जाऊंगा। उसे थार गाड़ी का बड़ा शौक था। 2020 के शुरुआती महीने की बात है। वह यूके चला गया, लेकिन उसका मकसद किसी भी तरह से अमेरिका जाना था। यूके में जेसीबी क्रेन चलाने लगा। महीने का तकरीबन ढाई-तीन लाख रुपए कमाता था। घर का एक हिस्सा मैंने अपनी कमाई और पेंशन फंड में से निकालकर बनाया था। आगे वाला हिस्सा गुरप्रीत ने यूके की कमाई से बनाया था। हमेशा कहता था- भईया थार गाड़ी लूंगा। मैं हमेशा कहता था, ले तो लोगे, रखोगे कहां। गली में घर है। मुश्किल से बाइक आ पाती है। ये सब सुनकर वो जमीन लेकर घर बनाने के बारे में सोचने लगा था। अचानक पता नहीं क्या हुआ, वह 2024 के मार्च में यूके से वापस आ गया। कहने लगा- अब तो अमेरिका जाकर ही दम लूंगा। 33 साल का हो चुका था। हम लोग कहते थे कि शादी कर लो। उम्र बीत रही है। वो कह देता- अमेरिका में सेटल होने के बाद ही शादी करूंगा। अब तो उसके अंतिम संस्कार के लिए डेड बॉडी की राह देख रहे हैं। पहले भी दो-तीन बार डंकी रूट से अमेरिका जाने का सोचा था, लेकिन पनामा से पहले ही उसे डिपोर्ट कर दिया जाता था। एक बार उसने वीजा के लिए कोशिश भी की, लेकिन नहीं लग पाया। इस बार उसने चंडीगढ़ के एक एजेंट से बात की। हमें पता था कि एजेंट के जरिए जाना, डंकी रूट से जाना कितना खतरनाक होता है। उसे भी पता था, लेकिन अमेरिका के आगे सब धुंधला हो चुका था। नहीं पता था कि वह इस बार जाएगा, तो कभी लौटकर नहीं आएगा। एजेंट ने 16 लाख में फ्लाइट से गुयाना तक भेजने की बात कही। मैंने अपनी पेंशन से 6 लाख रुपए दिए। कुछ पैसे गुरप्रीत के पास भी थे, बाकी कर्ज लेकर एजेंट को दिए थे। नवंबर के पहले हफ्ते में वह गुयाना के लिए निकल गया। जिस दिन उसे गुयाना जाना था, उसी दिन उसने बताया कि आज उसकी फ्लाइट है। अब सोचता हूं कि उस एजेंट को पैसे नहीं दिए होते, तो मेरा भाई शायद जिंदा होता, लेकिन मौत उसे खींचकर ले गई। गुयाना पहुंचने के बाद उसकी एक पाकिस्तानी एजेंट से 20 लाख में अमेरिका पहुंचाने की बात हुई। एजेंट ने कहा कि फ्लाइट से भेजेगा, लेकिन पैसे लेने के बाद एजेंट कहने लगा कि पनामा जंगल के रास्ते ही जाना पड़ेगा। वह पैदल ही मेक्सिको के लिए निकल गया। बताता था कि जंगल में कई जगह नरकंकाल दिखे हैं। 3-4 दिन में पनामा का जंगल पार किया। उसके पैर के अंगूठे के नाखून भी उखड़ गए थे, लेकिन अमेरिका जाने के जुनून में सब कुछ भूलकर बैठा था। 7 फरवरी को ग्वाटेमाला के एक होटल में स्टे किया था। मेक्सिको के लिए कार से निकलना था। 3 मंजिला होटल से जैसे ही नीचे उतरकर गाड़ी में बैठा, सीने में दर्द होने लगा। सांसें ऊपर-नीचे होने लगीं। हॉस्पिटल पहुंचने से पहले ही उसकी मौत हो गई। भाई ने सोचा था कि अमेरिका जाऊंगा। कमाऊंगा। दूसरों की तरह हमारे भी गाड़ी-बंगले होंगे। अब तो ऐसी स्थिति हो गई कि जो था, वो भी खत्म हो गया। हमने उस पाकिस्तानी एजेंट से भी बात करने की कोशिश की। उसने सीधे कह दिया- अब वह
मैं सितार सिंह, रिटायर्ड फौजी। अमृतसर के रमदास का रहने वाला हूं। एक हफ्ते से हम अपने छोटे भाई गुरप्रीत की लाश का इंतजार कर रहे हैं। उसकी डेड बॉडी सेंट्रल अमेरिका के ग्वाटेमाला के एक हॉस्पिटल में पड़ी है। मेरा भाई नवंबर के पहले हफ्ते में डंकी रूट से अमेरिका गया था। अब पता चला कि उसकी मौत हो गई है। 7 फरवरी, शुक्रवार का दिन। मेरी भांजी का चूड़ी फंक्शन था। हम सभी वहीं थे। शाम के 4 बजे गुरप्रीत ने वॉयस मैसेज भेजा था। बोला कि पनामा जंगल से निकलकर ग्वाटेमाला आ गया हूं। अब सब ठीक है। कुछ ही दिनों में मेक्सिको पहुंच जाऊंगा। एक दिन बाद 8 फरवरी को एक लड़के ने दो फोटो भेजी और कहा- ये गुरप्रीत है। फोटो ग्वाटेमाला के हॉस्पिटल से भेजी गई थी। लड़के ने बताया कि गुरप्रीत की हार्ट अटैक से मौत हो गई है। मेरा भाई और वो लड़का अमेरिका जाने के दौरान रास्ते में मिले थे। पापा और मां ने जैसे ही गुरप्रीत की डेड बॉडी की फोटो देखी। धड़ाम से गिर पड़े। वह अमेरिका जाने से पहले कहा करता था- पापा-मम्मी, भइया… एक बार अमेरिका में सेटल हो जाऊं, उसके बाद आप लोगों को भी लेकर जाऊंगा। यदि आप नहीं जाएंगे, तो आपके बच्चों को, भाभी को लेकर जाऊंगा। आप रहना यहां अकेले। अब 8 फरवरी से इंडियन एंबेसी कह रही है कि डॉक्युमेंट्स की प्रोसेस पूरी होने के बाद ही डेड बॉडी भेजेगी। 8 दिन हो गए हैं, अब तक बॉडी नहीं आई। आखिरी बार उसका चेहरा देख लें, उसका अंतिम संस्कार कर दें, अब यही हमारी आखिरी ख्वाहिश है। हफ्तेभर से घर में मातम पसरा है। बूढ़े मां-पापा, बहनें, सभी कलेजा पीटकर रो रहे हैं। भाई अमेरिका गया था, अपने सपने पूरे करने। हमें क्या पता था कि उसके अमेरिका पहुंचने से पहले ही मरने की खबर आ जाएगी। इसके लिए किस्मत को कोसें या खुद को, कुछ समझ नहीं आ रहा। काश! वो डंकी रूट से अमेरिका न गया होता। हम सबने उसे समझाया था कि मत जाओ। मैं रिटायर होकर आ गया हूं। हम दोनों भाई मिलकर कुछ करेंगे। वो नहीं माना। आखिर उसकी इस चाहत ने जान ले ली। हमने घर में बहुत गरीबी देखी है। पहले यह कच्चा मकान था। हमारे पास जमीन नहीं है। पापा दूसरों की जमीन ठेके पर लेकर खेती करते थे। हम लोग दो भाई और 5 बहन थे। पापा के लिए घर चला पाना मुश्किल हो रहा था। इसलिए मैंने सब्जी बेचना शुरू कर दिया। सुबह के वक्त पापा गांव-गांव घूमकर सब्जी बेचते। शाम को स्कूल से आने के बाद मैं सब्जी बेचता। कुछ दिन बाद मेरी आर्मी में जॉइनिंग हो गई। मैंने कई बार गुरप्रीत से भी आर्मी जॉइन करने के लिए कहा था। वो हमेशा मना कर देता। उस पर शुरू से ही विदेश जाने की धुन सवार थी। दरअसल, उसके कई सारे दोस्त एक-एक करके अमेरिका, यूके, ऑस्ट्रेलिया चले गए। इसलिए वो भी जाना चाहता था। 12वीं के बाद गुरप्रीत मुंबई चला गया था। वहां 7 साल तक मर्चेंट नेवी की नौकरी की, फिर गांव आ गया। यहां आकर उसने देखा कि जो लोग विदेश में रहकर पैसा कमा रहे हैं, वो थार से घूमते हैं। बड़ी-बड़ी कोठियों में रहते हैं। तब वो भी कहता था कि एक दिन विदेश जाऊंगा। उसे थार गाड़ी का बड़ा शौक था। 2020 के शुरुआती महीने की बात है। वह यूके चला गया, लेकिन उसका मकसद किसी भी तरह से अमेरिका जाना था। यूके में जेसीबी क्रेन चलाने लगा। महीने का तकरीबन ढाई-तीन लाख रुपए कमाता था। घर का एक हिस्सा मैंने अपनी कमाई और पेंशन फंड में से निकालकर बनाया था। आगे वाला हिस्सा गुरप्रीत ने यूके की कमाई से बनाया था। हमेशा कहता था- भईया थार गाड़ी लूंगा। मैं हमेशा कहता था, ले तो लोगे, रखोगे कहां। गली में घर है। मुश्किल से बाइक आ पाती है। ये सब सुनकर वो जमीन लेकर घर बनाने के बारे में सोचने लगा था। अचानक पता नहीं क्या हुआ, वह 2024 के मार्च में यूके से वापस आ गया। कहने लगा- अब तो अमेरिका जाकर ही दम लूंगा। 33 साल का हो चुका था। हम लोग कहते थे कि शादी कर लो। उम्र बीत रही है। वो कह देता- अमेरिका में सेटल होने के बाद ही शादी करूंगा। अब तो उसके अंतिम संस्कार के लिए डेड बॉडी की राह देख रहे हैं। पहले भी दो-तीन बार डंकी रूट से अमेरिका जाने का सोचा था, लेकिन पनामा से पहले ही उसे डिपोर्ट कर दिया जाता था। एक बार उसने वीजा के लिए कोशिश भी की, लेकिन नहीं लग पाया। इस बार उसने चंडीगढ़ के एक एजेंट से बात की। हमें पता था कि एजेंट के जरिए जाना, डंकी रूट से जाना कितना खतरनाक होता है। उसे भी पता था, लेकिन अमेरिका के आगे सब धुंधला हो चुका था। नहीं पता था कि वह इस बार जाएगा, तो कभी लौटकर नहीं आएगा। एजेंट ने 16 लाख में फ्लाइट से गुयाना तक भेजने की बात कही। मैंने अपनी पेंशन से 6 लाख रुपए दिए। कुछ पैसे गुरप्रीत के पास भी थे, बाकी कर्ज लेकर एजेंट को दिए थे। नवंबर के पहले हफ्ते में वह गुयाना के लिए निकल गया। जिस दिन उसे गुयाना जाना था, उसी दिन उसने बताया कि आज उसकी फ्लाइट है। अब सोचता हूं कि उस एजेंट को पैसे नहीं दिए होते, तो मेरा भाई शायद जिंदा होता, लेकिन मौत उसे खींचकर ले गई। गुयाना पहुंचने के बाद उसकी एक पाकिस्तानी एजेंट से 20 लाख में अमेरिका पहुंचाने की बात हुई। एजेंट ने कहा कि फ्लाइट से भेजेगा, लेकिन पैसे लेने के बाद एजेंट कहने लगा कि पनामा जंगल के रास्ते ही जाना पड़ेगा। वह पैदल ही मेक्सिको के लिए निकल गया। बताता था कि जंगल में कई जगह नरकंकाल दिखे हैं। 3-4 दिन में पनामा का जंगल पार किया। उसके पैर के अंगूठे के नाखून भी उखड़ गए थे, लेकिन अमेरिका जाने के जुनून में सब कुछ भूलकर बैठा था। 7 फरवरी को ग्वाटेमाला के एक होटल में स्टे किया था। मेक्सिको के लिए कार से निकलना था। 3 मंजिला होटल से जैसे ही नीचे उतरकर गाड़ी में बैठा, सीने में दर्द होने लगा। सांसें ऊपर-नीचे होने लगीं। हॉस्पिटल पहुंचने से पहले ही उसकी मौत हो गई। भाई ने सोचा था कि अमेरिका जाऊंगा। कमाऊंगा। दूसरों की तरह हमारे भी गाड़ी-बंगले होंगे। अब तो ऐसी स्थिति हो गई कि जो था, वो भी खत्म हो गया। हमने उस पाकिस्तानी एजेंट से भी बात करने की कोशिश की। उसने सीधे कह दिया- अब वह मर गया, तो हम क्या करें। जिंदा रहता, तब न कोई बात होती। पता नहीं क्या शौक है पंजाबियों को। अमेरिका जाने की सनक चढ़ी रहती है। जान की बाजी लगाकर, खतरनाक रास्ते से भी अमेरिका जा रहे हैं। अमेरिका के सपने के चक्कर में खुद की बलि चढ़ाने जा रहे हैं। 5 फरवरी को डिपोर्ट होकर जब 104 लोग आए, तो मैंने गुरप्रीत से पूछा- उसने कहा था कि हम तो अभी रास्ते में ही हैं। यदि यह सिलसिला नहीं रुका, तो जैसे मैं अपने भाई की डेड बॉडी के लिए, उसके चेहरे को आखिरी बार देखने के लिए हर किसी से भीख मांग रहा हूं, दूसरों को भी यह दिन देखने पड़ सकते हैं। फिर रोने के सिवा कुछ नहीं बचेगा…। (ये सारी बातें सितार सिंह ने दैनिक भास्कर रिपोर्टर नीरज झा से साझा कीं…) ------------------------------------------------------ संडे जज्बात सीरीज की ये स्टोरीज भी पढ़िए... 1.संडे जज्बात- शादी कर बेटी लंदन भेजी, वहां लाश मिली:लड़का बिना देखे रिश्ता किया, हर्षिता ने कहा था- वो मुझे मार देगा मैं सुदेश कुमारी, हर्षिता ब्रेला की मां। दिल्ली के पालम में रहती हूं। आज से 94 दिन पहले 15 नवंबर 2024 को मेरी बेटी हर्षिता की लाश लंदन में एक कार में मिली। 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