हिमालय पर 100 किमी की रफ्तार से दौड़ेगी रेल:ऋषिकेश-कर्णप्रयाग प्रोजेक्ट का 80% काम पूरा, ऋषिकेश​ से​​​​​​ 5 घंटे में बद्रीनाथ धाम पहुंच सकेंगे

’हम लोग आगे तक जाना चाहते थे, लेकिन ऋषिकेश से ही लौटना पड़ रहा है। महिलाओं और बच्चों के साथ आगे सड़क का सफर मुश्किल होगा। पैसे भी ज्यादा खर्च होंगे। अगर आगे तक ट्रेन चलने लगे, तो हम अपने बुजुर्गों को भी यहां घुमा ले जाएंगे।’ झारखंड के लोहरदगा जिले के रहने वाले उमेश साहू परिवार के साथ उत्तराखंड घूमने आए थे, लेकिन उन्हें ऋषिकेश से ही लौटना पड़ा। उनके लिए परिवार के साथ आगे का सफर मुश्किल ही नहीं, महंगा भी है। हालांकि, उनका पहाड़ों के बीच सरपट दौड़ती ट्रेन का सपना 2027 तक पूरा हो जाएगा। ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेल लाइन बिछाने का 80% काम पूरा हो चुका है। ये प्रोजेक्ट चार धाम रेल प्रोजेक्ट के तहत बन रहा है। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट दिसंबर, 2026 तक पूरा होने की उम्मीद है। इसके बाद श्रद्धालु ट्रेन से रुद्रप्रयाग और कर्णप्रयाग पहुंच सकेंगे। इससे केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम का सफर आसान हो जाएगा। ऋषिकेश​ से​​​​​​ 4 घंटे में गौरीकुंड, 5 घंटे में बद्रीनाथ धाम पहुंच सकेंगे अब तक ट्रेन की पहुंच उत्तराखंड में ऋषिकेश तक ही है। प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक ट्रेन से पहुंचने में करीब 2 घंटे लगेंगे। रुद्रप्रयाग से केदारनाथ बेसकैंप यानी गौरीकुंड जाने के लिए सड़क के जरिए 2 घंटे का सफर करना होगा। वहीं, कर्णप्रयाग स्टेशन पर उतरने के बाद करीब 3 घंटे की रोड जर्नी कर बद्रीनाथ धाम पहुंच सकेंगे। अभी ऋषिकेश से केदारनाथ बेसकैंप और बद्रीनाथ तक बस या कार से जाने में 9 से 12 घंटे लगते हैं। सिखों के पवित्र तीर्थ हेमकुंड साहिब जाने के लिए भी कर्णप्रयाग उतरना होगा। यहां से ढाई घंटे में हेमकुंड साहिब पहुंच सकते हैं। मैप के जरिए समझिए कि ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट कहां बन रहा है और किन-किन शहरों से होकर गुजरेगा। अभी चार धाम का सफर उत्तराखंड के चारधाम यानी गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ की यात्रा हरिद्वार से होती है। हरिद्वार से टैक्सी या बस से श्रद्धालुओं का जत्था निकलता है। पहले दिन का पड़ाव यमुनोत्री होता है। इसके बाद गंगोत्री जाते हैं। फिर रुद्रप्रयाग होते हुए केदारनाथ धाम के लिए यात्रा करते हैं। बद्रीनाथ धाम सबसे आखिरी पड़ाव है। अभी अगर हम ऋषिकेश से चारों धाम के लिए सफर शुरू करते हैं, तो यहां से बस या गाड़ी के जरिए यमुनोत्री पहुंचने में करीब 9 घंटे लगते हैं। यमुनोत्री से गंगोत्री के सफर में भी 9 से 10 घंटे का वक्त लगता है। वहीं केदारनाथ जाने के लिए ऋषिकेश से गौरीकुंड पहुंचना होता है। पहाड़ी रास्ता होने की वजह से 220 किमी का ये सफर बस या गाड़ी से तय करने में करीब 8-9 घंटे लगते हैं। इसके बाद गौरीकुंड से 16 से 18 किमी की ट्रैकिंग करके मंदिर तक पहुंचना होता है। ऋषिकेश से बद्रीनाथ की दूरी 286 किमी है। यहां बस से पहुंचने में 11 से 12 घंटे लगते हैं। अगर केदारनाथ से सीधे बद्रीनाथ जाना हो तो 211 किमी के सफर में 8-9 घंटे लगते हैं। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद इस प्रोजेक्ट के पूरा होने के बाद यमुनोत्री और गंगोत्री के सफर में तो कोई खास बदलाव नहीं आएगा, लेकिन केदारनाथ और बद्रीनाथ का सफर आसान हो जाएगा। ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग तक का सफर ट्रेन से महज डेढ़ घंटे में पूरा होगा। रुद्रप्रयाग से बस से गौरीकुंड तक पहुंचने में करीब दो घंटे लगेंगे। यहां से केदारनाथ के लिए ट्रैकिंग शुरू कर सकेंगे। वहीं बद्रीनाथ के लिए ऋषिकेश से कर्णप्रयाग पहुंचना होगा। यहां से बस के जरिए 128 किमी का सफर तय करने में 3 घंटे लगेंगे। चार धाम रेल प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद चार धाम रेल प्रोजेक्ट पूरा होने की अभी कोई डेडलाइन तय नहीं है। ये प्रोजेक्ट पूरा होगा, तो चारों धाम के लिए सफर और आसान हो जाएगा। यमुनोत्री के लिए डोईवाला से सीधे पलार तक ट्रेन से पहुंच सकेंगे। इसके बाद यमुनोत्री तक पहुंचने के लिए गाड़ी से 38 किमी की दूरी तय करनी होगी। वहीं गंगोत्री के लिए मनेरी तक ट्रेन की पहुंच होगी। मनेरी से गंगोत्री के लिए 84 किमी बस या गाड़ी से जाना होगा। केदारनाथ के लिए ऋषिकेश से सोनप्रयाग तक ट्रेन से पहुंच सकेंगे। फिर यहां से गाड़ी या टैक्सी के जरिए 8 किमी की दूरी तय करके गौरीकुंड पहुंचा जा सकेगा। यहां से केदारनाथ के लिए ट्रैकिंग शुरू होगी। वहीं, बद्रीनाथ के लिए ऋषिकेश से ट्रेन से जोशीमठ पहुंच सकेंगे। फिर जोशीमठ से बद्रीनाथ का 40 किमी का सफर ही बचेगा, जिसे टैक्सी या गाड़ी से पूरा कर सकेंगे। अब बात ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट की खराब मौसम और लैंडस्लाइड नहीं रोक पाएंगे सफर हमने सफर की शुरुआत ऋषिकेश रेलवे स्टेशन से की। यहां हमें राहुल शर्मा मिले। इत्तेफाक से राहुल ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट पर ही काम कर रहे हैं। वे कहते हैं, ‘रेल प्रोजेक्ट पूरा होने पर पहाड़ी रास्तों पर सफर आसान हो जाएगा। कई बार मौसम बिगड़ने या लैंडस्लाइड की वजह से रास्ते बंद हो जाते हैं। उस वक्त ट्रेन भी एक विकल्प होगी।’ ’मैं इस प्रोजेक्ट के तहत बन रही टनल पर काम कर रहा हूं। ये टनल 9 किमी लंबी है। यकीन मानिए उस टनल से ट्रेन बाहर निकलेगी, तो नजारा देखकर दिल खुश हो जाएगा।’ इसी प्रोजेक्ट के तहत ऋषिकेश रेलवे स्टेशन को वर्ल्ड क्लास स्टेशन की तरह डेवलप किया गया है। कुंभ के दौरान हरिद्वार स्टेशन पर भीड़ ज्यादा होने पर यात्री इसका इस्तेमाल कर सकेंगे। यहां से पब्लिक ट्रांसपोर्ट के जरिए हरिद्वार पहुंचना मुश्किल नहीं है। 16 टनल और 35 ब्रिज से गुजरेगी ट्रेन पहाड़ी इलाकों में रेल प्रोजेक्ट पर काम करना बहुत चैलेंजिंग होता है। हिमालय के शिवालिक क्षेत्र में तो ये और भी मुश्किल है। इन रेल प्रोजेक्ट्स में दो तरह का कंस्ट्रक्शन सबसे ज्यादा होता है। 1. टनल: प्रोजेक्ट के तहत पहाड़ काटकर कुल 16 टनल बनाई जा रही हैं। 2. ब्रिज: दर्रे और नदियां पार करने के लिए 35 ब्रिज तैयार किए जा रहे हैं। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट के चीफ प्रोजेक्ट मैनेजर अजीत यादव बताते हैं, ‘रेल प्रोजेक्ट कुल 125 किम

हिमालय पर 100 किमी की रफ्तार से दौड़ेगी रेल:ऋषिकेश-कर्णप्रयाग प्रोजेक्ट का 80% काम पूरा, ऋषिकेश​ से​​​​​​ 5 घंटे में बद्रीनाथ धाम पहुंच सकेंगे
’हम लोग आगे तक जाना चाहते थे, लेकिन ऋषिकेश से ही लौटना पड़ रहा है। महिलाओं और बच्चों के साथ आगे सड़क का सफर मुश्किल होगा। पैसे भी ज्यादा खर्च होंगे। अगर आगे तक ट्रेन चलने लगे, तो हम अपने बुजुर्गों को भी यहां घुमा ले जाएंगे।’ झारखंड के लोहरदगा जिले के रहने वाले उमेश साहू परिवार के साथ उत्तराखंड घूमने आए थे, लेकिन उन्हें ऋषिकेश से ही लौटना पड़ा। उनके लिए परिवार के साथ आगे का सफर मुश्किल ही नहीं, महंगा भी है। हालांकि, उनका पहाड़ों के बीच सरपट दौड़ती ट्रेन का सपना 2027 तक पूरा हो जाएगा। ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेल लाइन बिछाने का 80% काम पूरा हो चुका है। ये प्रोजेक्ट चार धाम रेल प्रोजेक्ट के तहत बन रहा है। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट दिसंबर, 2026 तक पूरा होने की उम्मीद है। इसके बाद श्रद्धालु ट्रेन से रुद्रप्रयाग और कर्णप्रयाग पहुंच सकेंगे। इससे केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम का सफर आसान हो जाएगा। ऋषिकेश​ से​​​​​​ 4 घंटे में गौरीकुंड, 5 घंटे में बद्रीनाथ धाम पहुंच सकेंगे अब तक ट्रेन की पहुंच उत्तराखंड में ऋषिकेश तक ही है। प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक ट्रेन से पहुंचने में करीब 2 घंटे लगेंगे। रुद्रप्रयाग से केदारनाथ बेसकैंप यानी गौरीकुंड जाने के लिए सड़क के जरिए 2 घंटे का सफर करना होगा। वहीं, कर्णप्रयाग स्टेशन पर उतरने के बाद करीब 3 घंटे की रोड जर्नी कर बद्रीनाथ धाम पहुंच सकेंगे। अभी ऋषिकेश से केदारनाथ बेसकैंप और बद्रीनाथ तक बस या कार से जाने में 9 से 12 घंटे लगते हैं। सिखों के पवित्र तीर्थ हेमकुंड साहिब जाने के लिए भी कर्णप्रयाग उतरना होगा। यहां से ढाई घंटे में हेमकुंड साहिब पहुंच सकते हैं। मैप के जरिए समझिए कि ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट कहां बन रहा है और किन-किन शहरों से होकर गुजरेगा। अभी चार धाम का सफर उत्तराखंड के चारधाम यानी गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ की यात्रा हरिद्वार से होती है। हरिद्वार से टैक्सी या बस से श्रद्धालुओं का जत्था निकलता है। पहले दिन का पड़ाव यमुनोत्री होता है। इसके बाद गंगोत्री जाते हैं। फिर रुद्रप्रयाग होते हुए केदारनाथ धाम के लिए यात्रा करते हैं। बद्रीनाथ धाम सबसे आखिरी पड़ाव है। अभी अगर हम ऋषिकेश से चारों धाम के लिए सफर शुरू करते हैं, तो यहां से बस या गाड़ी के जरिए यमुनोत्री पहुंचने में करीब 9 घंटे लगते हैं। यमुनोत्री से गंगोत्री के सफर में भी 9 से 10 घंटे का वक्त लगता है। वहीं केदारनाथ जाने के लिए ऋषिकेश से गौरीकुंड पहुंचना होता है। पहाड़ी रास्ता होने की वजह से 220 किमी का ये सफर बस या गाड़ी से तय करने में करीब 8-9 घंटे लगते हैं। इसके बाद गौरीकुंड से 16 से 18 किमी की ट्रैकिंग करके मंदिर तक पहुंचना होता है। ऋषिकेश से बद्रीनाथ की दूरी 286 किमी है। यहां बस से पहुंचने में 11 से 12 घंटे लगते हैं। अगर केदारनाथ से सीधे बद्रीनाथ जाना हो तो 211 किमी के सफर में 8-9 घंटे लगते हैं। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद इस प्रोजेक्ट के पूरा होने के बाद यमुनोत्री और गंगोत्री के सफर में तो कोई खास बदलाव नहीं आएगा, लेकिन केदारनाथ और बद्रीनाथ का सफर आसान हो जाएगा। ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग तक का सफर ट्रेन से महज डेढ़ घंटे में पूरा होगा। रुद्रप्रयाग से बस से गौरीकुंड तक पहुंचने में करीब दो घंटे लगेंगे। यहां से केदारनाथ के लिए ट्रैकिंग शुरू कर सकेंगे। वहीं बद्रीनाथ के लिए ऋषिकेश से कर्णप्रयाग पहुंचना होगा। यहां से बस के जरिए 128 किमी का सफर तय करने में 3 घंटे लगेंगे। चार धाम रेल प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद चार धाम रेल प्रोजेक्ट पूरा होने की अभी कोई डेडलाइन तय नहीं है। ये प्रोजेक्ट पूरा होगा, तो चारों धाम के लिए सफर और आसान हो जाएगा। यमुनोत्री के लिए डोईवाला से सीधे पलार तक ट्रेन से पहुंच सकेंगे। इसके बाद यमुनोत्री तक पहुंचने के लिए गाड़ी से 38 किमी की दूरी तय करनी होगी। वहीं गंगोत्री के लिए मनेरी तक ट्रेन की पहुंच होगी। मनेरी से गंगोत्री के लिए 84 किमी बस या गाड़ी से जाना होगा। केदारनाथ के लिए ऋषिकेश से सोनप्रयाग तक ट्रेन से पहुंच सकेंगे। फिर यहां से गाड़ी या टैक्सी के जरिए 8 किमी की दूरी तय करके गौरीकुंड पहुंचा जा सकेगा। यहां से केदारनाथ के लिए ट्रैकिंग शुरू होगी। वहीं, बद्रीनाथ के लिए ऋषिकेश से ट्रेन से जोशीमठ पहुंच सकेंगे। फिर जोशीमठ से बद्रीनाथ का 40 किमी का सफर ही बचेगा, जिसे टैक्सी या गाड़ी से पूरा कर सकेंगे। अब बात ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट की खराब मौसम और लैंडस्लाइड नहीं रोक पाएंगे सफर हमने सफर की शुरुआत ऋषिकेश रेलवे स्टेशन से की। यहां हमें राहुल शर्मा मिले। इत्तेफाक से राहुल ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट पर ही काम कर रहे हैं। वे कहते हैं, ‘रेल प्रोजेक्ट पूरा होने पर पहाड़ी रास्तों पर सफर आसान हो जाएगा। कई बार मौसम बिगड़ने या लैंडस्लाइड की वजह से रास्ते बंद हो जाते हैं। उस वक्त ट्रेन भी एक विकल्प होगी।’ ’मैं इस प्रोजेक्ट के तहत बन रही टनल पर काम कर रहा हूं। ये टनल 9 किमी लंबी है। यकीन मानिए उस टनल से ट्रेन बाहर निकलेगी, तो नजारा देखकर दिल खुश हो जाएगा।’ इसी प्रोजेक्ट के तहत ऋषिकेश रेलवे स्टेशन को वर्ल्ड क्लास स्टेशन की तरह डेवलप किया गया है। कुंभ के दौरान हरिद्वार स्टेशन पर भीड़ ज्यादा होने पर यात्री इसका इस्तेमाल कर सकेंगे। यहां से पब्लिक ट्रांसपोर्ट के जरिए हरिद्वार पहुंचना मुश्किल नहीं है। 16 टनल और 35 ब्रिज से गुजरेगी ट्रेन पहाड़ी इलाकों में रेल प्रोजेक्ट पर काम करना बहुत चैलेंजिंग होता है। हिमालय के शिवालिक क्षेत्र में तो ये और भी मुश्किल है। इन रेल प्रोजेक्ट्स में दो तरह का कंस्ट्रक्शन सबसे ज्यादा होता है। 1. टनल: प्रोजेक्ट के तहत पहाड़ काटकर कुल 16 टनल बनाई जा रही हैं। 2. ब्रिज: दर्रे और नदियां पार करने के लिए 35 ब्रिज तैयार किए जा रहे हैं। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट के चीफ प्रोजेक्ट मैनेजर अजीत यादव बताते हैं, ‘रेल प्रोजेक्ट कुल 125 किमी का है। इसमें टनल की लंबाई 104 किमी है। कुल 16 टनल में से जिन टनल की लंबाई 3 किमी से ज्यादा है, उसमें हमने एस्केप टनल बनाई है। एस्केप टनल की टोटल लंबाई 98 किलोमीटर है। इस तरह प्रोजेक्ट में कुल टनल ड्रिलिंग की लंबाई 203 किलोमीटर है।‘ ‘प्रोजेक्ट में 19 बड़े ब्रिज हैं। बाकी छोटे भी हैं। 75% ब्रिज बनकर तैयार हैं। इस साल के आखिर तक ब्रिज बनाने का काम पूरा हो जाएगा। टनल में 90% खुदाई हो चुकी है और लाइनिंग का काम चल रहा है। ट्रैक बिछाने का काम जल्द ही शुरू हो जाएगा।’ अजीत यादव कहते हैं, हमें उम्मीद है कि दिसंबर 2026 तक काम पूरा हो जाएगा। हालांकि, 2 टनल में ड्रिलिंग फंसने की वजह से डेडलाइन थोड़ी आगे बढ़ सकती है। 'नवंबर 2016 में इस रेल प्रोजेक्ट का डीटेल्ड एस्टीमेट, यानी लागत 16,200 करोड़ रुपए थी। हिमालय पर काम करने की चुनौतियों की वजह से लागत में इजाफा हुआ है। महंगाई और कोविड की वजह से भी समय और लागत बढ़ी है। अब फिर से बढ़ी हुई लागत का अंदाजा लगाया जा रहा है, अभी रिवाइज्ड एस्टीमेट की रिपोर्ट तैयार नहीं हुई है।’ रेस्क्यू के लिए 12 एस्केप टनल अजीत बताते हैं, ‘एस्केप टनल रेलवे ट्रैक टनल के ही पैरेलल एक छोटी टनल होगी। ये हर 350 मीटर की दूरी पर मेन टनल से जुड़ी रहेगी। हर 3 किमी से ज्यादा लंबी टनल में हमने एस्केप टनल बनाई है। इसे सेफ्टी के लिहाज से बनाया गया है।‘ ‘टनल में अगर कभी कोई रेल हादसा होता है, तो इस टनल के जरिए राहत-बचाव कार्य किया जा सकेगा। एस्केप टनल से गाड़ियों के जरिए लोगों तक मदद पहुंचाई जा सकेगी। इसके अंदर एंबुलेंस जैसे व्हीकल आसानी से चलाए जा सकते हैं। इस प्रोजेक्ट में कुल 12 एस्केप टनल बनाई गई हैं।‘ ‘हमने टनल की खुदाई का 90% काम कर लिया है। रेलवे टनल और एस्केप टनल की कुल लंबाई 202 किमी है। इसमें से हमने 181 किमी की टनल तैयार कर ली हैं। 70-80 किमी के आसपास हमने लाइनिंग का भी काम कर लिया है।’ पहाड़ों पर 100km की स्पीड से दौड़ेगी ट्रेन, 7 घंटे का सफर 2 घंटे में ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट को इस तरह डिजाइन किया गया है कि टनल का घुमाव 4 डिग्री से कम ही है। टनल जितनी कम घुमावदार होगी, ट्रेन उतनी ही स्पीड से दौड़ेगी। अजीत यादव बताते हैं, ‘ज्यादातर हिस्सों में टनल का घुमाव 2.5 डिग्री से ज्यादा नहीं है। इससे ट्रेन आसानी से 100 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकेगी। कोई भी ट्रेन आराम से रुकते हुए भी 2-3 घंटे में ऋषिकेश से कर्णप्रयाग पहुंच सकती है।’ ’सड़क के रास्ते सफर करने पर 7-8 घंटे का वक्त लगता है, लेकिन ट्रेन से सफर करने पर 5-6 घंटे बचेंगे। रेलवे ट्रैक ऑलवेदर प्रूफ भी रहेगा। ऋषिकेश के आगे कर्णप्रयाग तक जिस तरह की यंग माउंटेन वाली जियोलॉजी है, उसमें बरसात के वक्त कई बार लैंडस्लाइड होती रहती है। इस वजह से एक-एक हफ्ते तक के लिए रास्ते बंद हो जाते हैं।’ ‘ऐसे में पहाड़ पर रहने वालों के लिए ट्रैवलिंग आसान हो जाएगी। गढ़वाल इलाके के लोगों के लिए ये रेल प्रोजेक्ट बहुत फायदेमंद होगा। रेल रूट के साथ कंपनियां और इन्वेस्टमेंट भी आएगा। नौकरियों के मौके बढ़ेंगे। उत्तराखंड से माइग्रेशन भी कम होगा।’ करीब 29 साल अटका रहा प्रोजेक्ट, 2019 में शुरू हुआ काम 1996 में ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट के लिए पहली बार सर्वे शुरू हुआ। इसमें काफी वक्त लगा। 9 नवंबर 2011 को UPA चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने प्रोजेक्ट का भूमिपूजन किया। उम्मीद जगी कि अब तेजी से काम होगा। हालांकि, प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में चला गया। 2015 में BJP सरकार आने के बाद इस पर फिर काम शुरू हुआ। प्रोजेक्ट का डिटेल सर्वे किया गया और लागत का अनुमान लगाया गया। ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट की लागत 16,200 करोड़ रुपए आंकी गई। चीफ प्रोजेक्ट मैनेजर अजीत यादव बताते हैं, ‘प्रोजेक्ट के लिए जमीन पर काम 2019 में शुरू हुआ। इसके पहले सिर्फ एडिट टनल की खुदाई से काम शुरू हुआ था। मेन टनल की खुदाई 2020 के आखिर में शुरू हुई।‘ हिमालय में ड्रिलिंग मुश्किल, जियोलॉजिकल मूवमेंट से दिक्कत अजीत बताते हैं, ‘प्रोजेक्ट की टनल-वन 11 किमी और टनल-फाइव 10 किमी लंबी है। इनमें ड्रिलिंग के दौरान जियोलॉजिकल वजहों से दिक्कत आ रही है। टनल वन में खुदाई के दौरान मिट्टी के साथ पानी आ रहा है। इस वजह से ड्रिल करने में ज्यादा वक्त लग रहा है। पत्थर मिलते ही ड्रिलिंग करना आसान हो जाएगा।‘ ‘हिमालय को यंग माउंटेन कहते हैं, जहां जियोलॉजिकल मूवमेंट होते रहते हैं। इसकी वजह से लैंडस्लाइड होती हैं। चट्टानें (रॉक कंसोलिडेशन) अपना आकार और स्थिति बदलती रहती हैं। तकनीकी भाषा में कहें तो टेक्टोनिकली ये पहाड़ काफी जीवंत है।‘ प्रोजेक्ट पर काम करने वाले एक इंजीनियर बताते हैं, ‘हिमालय में काम करने के दौरान हमें भूगर्भीय तौर पर लगातार चौंकाने वाली चीजें मिलती हैं। हमारे प्रोजेक्ट की ज्यादातर टनल शिवालिक रेंज से ही गुजर रही हैं। कुछ हिस्सा लोअर हिमालयन रेंज से गुजर रहा है। गंगा और अलकनंदा नदी के किनारों से ही प्रोजेक्ट की रेल लाइन गुजरती है।‘ जर्मनी से मंगाई एडवांस टनल बोरिंग मशीन रेल प्रोजेक्ट की सबसे बड़ी टनल 14.7 किमी की है। ये देवप्रयाग से जनासू तक जाती है। प्रोजेक्ट मैनेजर बताते हैं, ‘इतनी लंबी टनल बनाने के लिए बीच में कोई भी फेस खोलने की जगह नहीं थी। इसलिए हमने टनल की खुदाई बोरिंग मशीन (TBM) से करने का फैसला किया। TBM जर्मनी से आई हाई क्वालिटी मशीन है, जिससे खुदाई का काम आसान हुआ है।‘ ‘ऋषिकेश-कर्णप्रयाग प्रोजेक्ट के दौरान हमने कई वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाए। हमने पूरी दुनिया में मिट्टी में टनल खोदने का काम सबसे तेजी से किया है। एक महीने में 100 मीटर की खुदाई की। TBM ने एक महीने में 550 मीटर की खुदाई की है। ये भी एक वर्ल्ड रिकॉर्ड है।‘ ‘हम हर दिन औसतन 2.7 मीटर की खुदाई कर रहे हैं। हर 10 मीटर की दूरी पर हिमालय के पत्थरों (रॉक कंसोलिडेशन) में बदलाव आ जाता है। हर दिन एक फेज का मुआयना करना पड़ता है और रिव्यू करके गाइडलाइंस देनी होती है कि आगे कैसे काम करना है।‘ अजीत बताते हैं, ‘पूरे भारत में टनलिंग की सबसे बड़ी मशीनें इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं। वहीं, ऑटोमेडेट जंबो मशीनें भी काम कर रही हैं।‘ ‘ड्रिल जंबो मशीन से हम इन्वेस्टिगेटिव ड्रिलिंग भी करते हैं, जिससे हम अंदाजा लगा पाते हैं कि 20 मीटर बाद हमें किस तरह की जियोलॉजी मिलने वाली है। TBM से तेजी से खुदाई होती है। इससे हम 60 मीटर आगे की इन्वेस्टिगेटिव ड्रिलिंग करते हैं। अगर मुश्किल जियोलॉजी होती है तो हम उस हिसाब से पहले तैयारी कर लेते हैं।‘ ‘TBM मशीन भारत में कई जगह पर फंस चुकी है। इसलिए हम बहुत सतर्कता से काम कर रहे हैं। अब TBS का काम सिर्फ एक किमी का ही बचा है।‘ पहाड़ों पर ड्रिलिंग और ब्लास्टिंग से आसपास के घरों में दरार की शिकायतें रेल प्रोजेक्ट जिन पहाड़ी इलाकों से गुजर रहा है, वहां आसपास के मकानों में दरार पड़ने की शिकायतें मिल रही हैं। इस मामले में कुल 1058 परिवारों को 10 करोड़ से ज्यादा का मुआवजा दिया गया है। प्रोजेक्ट मैनेजर कहते हैं, ‘पत्थर हमें कैसा भी मिल रहा हो, लेकिन ब्लास्टिंग की जरूरत पड़ती ही है। हम जिस जगह ब्लास्टिंग करते हैं, उसके आसपास के रिहायशी इलाकों में कंपन मापने वाली मशीन जियोफोन भी लगाते हैं।‘ ‘इसके जरिए पीक पार्टिकल वेलोसिटी का डेटा निकलता है, हम उसे मॉनिटर करते रहते हैं। जिन लोगों के घरों में दरारें आई हैं, उसकी कई सारी और वजहें भी हो सकती हैं।’ .......................................... ये खबर भी पढ़ें... कैसे बना दुनिया का सबसे ऊंचा चिनाब रेलवे ब्रिज 16 साल में 1486 करोड़ रुपए की लागत से बना चिनाब ब्रिज इंजीनियरिंग का शानदार नमूना तो है ही, भारतीय रेलवे के लिए भी अब तक का सबसे चैलेंजिंग प्रोजेक्ट रहा है। जम्मू और पीर-पंजाल में पहाड़ियों की ऊंचाई पार करते हुए आपकी ट्रेन इसी ब्रिज के जरिए चिनाब घाटी पहुंचेगी। दैनिक भास्कर आपको बता रहा है इस ब्रिज की पूरी कहानी, वो भी ग्राउंड जीरो से। पढ़िए पूरी खबर...